जबतक मनुष्य के पास ईश्वर की सही और स्पष्ट अवधारणा नहीं होगी और मौत के बाद मिलने वाले जीवन में उसका पूरा विश्वाश नहीं होगा तबतक उसका सच्चाई पे अडिग रहते हुए बुरे कर्मों से दूर रहना आसान नहीं होगा।
क्या हम सूरज या ऑक्सीजन या बारिश के बिना रह सकते हैं? आपका जवाब बिल्कुल ‘नहीं’ होगा।
यदि हिंदुओं का अपना ईश्वर होता, ईसाइयों का अपना ईश्वर होता और मुसलमानों का अपना ईश्वर होता, तो कल्पना कीजिए कि इस स्तिथि में क्या होगा? यदि लोगों के अपने अपने देवता होते, तो क्या इन देवताओं के बीच कभी इस बात पर मतभेद और लड़ाई नहीं होती कि किसके भक्तों को सूर्य, ऑक्सीजन या बारिश से अधिक लाभ मिलने चाहिए? क्या आपने कभी इस बारे में सोचा हैं ? ऐसी स्तिथि में निश्चित तौर पर ऐसे मतभेद और लड़ाई की संभावना ज़रूर होगी।
लेकिन सच्चाई यह है कि, पृथ्वी पर हम कभी ऐसे किसी भी भेदभाव का अनुभव नहीं करते हैं। क्या इस सच्चाई में हमारे सीखने के लिए कुछ हैं?
हम सब बिना किसी भेदभाव के सामान रूप से सभी प्राकृतिक संसाधनों के लाभों का आनंद लेते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग किस विश्वास या धर्म का पालन करते हैं, उन सब लोगों के लिए, एक समान प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं जिसे केवल एक ही ईश्वर ने बनाया था और वही अकेला ईश्वर, बिना भेदभाव किए, सारे मनुष्यों के लिए इन सारे संसाधनों की व्यवस्था करता है।
यदि स्वर्ग में या पृथ्वी पर एक ईश्वर के अलावा और भी देवता होते, तो ये दोनों जगह निश्चित रूप से बर्बाद हो जाते।
कुरान अध्याय 21: आयत 22