“मुसलमान मांसाहारी क्यों होते हैं?” इस प्रश्न का सरल उत्तर यह है कि मुसलमानों का ऐसा मानना हैं कि “ईश्वर ने मांसाहारी भोजन खाने की अनुमति दी है।” पर यह बात काफ़ी हैरान करती है कि ईश्वर जो सबसे बड़ा दयावान है आखिर क्यों निर्दोष जानवरों को मारने की अनुमति देगा? चलिए आज इस विषय पे चर्चा करते हैं।
नोट: लेख के अंत में “अतिरिक्त जानकारी” वाले खंड में इस लेख से संबंधित विभिन्न विषयों पर अतिरिक्त जानकारी दी गई है।
इस्लाम में मांसाहारी खाना अनिवार्य नहीं है
हां, ईश्वर ने मांसाहारी भोजन करने की अनुमति दी है लेकिन उसे खाना अनिवार्य नहीं किया है। एक व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी भी हो सकता है और साथ ही साथ एक बहुत अच्छा मुसलमान भी। इसमें बिल्कुल कोई भी विरोधभास नहीं है।
क्या पशु क्रूरता पर सहमति है?
आमतौर पर बहुत से लोगों का सोचना हैं कि शाकाहारी समुदाय एक ऐसा समरूप समूह हैं जिसमें प्रायः सभी लोग पशु क्रूरता पर समान समझ रखते है। किन्तु यह सच नहीं है। “शाकाहारी” समुदाय का ध्यान से विश्लेषण करने पर, हमें पशु क्रूरता पर कई दिलचस्प तथ्य देखने को मिलते हैं। आइए कुछ पर नजर डालते हैं।
लैक्टो-ओवो शाकाहारी
ऐसे शाकाहारी समुदाय भोजन के साथ-साथ डेयरी उत्पाद (दूध, पनीर, मक्खन, दही, आइसक्रीम) और अंडे भी खाते हैं।
लैक्टो-शाकाहारी
ऐसे शाकाहारी समुदाय डेयरी उत्पाद तो खाते हैं लेकिन अंडे को मांसाहारी आहार मानते हैं।
ओवो-शाकाहारी
ये शाकाहारी समुदाय अंडे खाते हैं लेकिन डेयरी उत्पादों के सेवन को पशु क्रूरता के समर्थन के रूप में देखते हैं।
पेसटेरियन
ये लोग डेयरी उत्पादों और अंडों को ना कहते हैं, लेकिन मछली खाते हैं।
शुद्ध शाकाहारी
ऐसे शाकाहारी समुदाय पशु आधारित उत्पादों से पूरी तरह से बचते हैं और केवल पौधे एवं वनस्पती आधारित आहार खाते हैं। शाकाहारी लोग बैग, जूते, जानवरों के चमड़े से बने कपड़े जैसे उत्पादों का भी उपयोग नहीं करते हैं। वे जानवरों के जीवन को अधिक महत्व देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि जानवर भी संवेदनशील प्राणी हैं।
फलाहारी
ऐसे लोग सभी जीव के जीवन को पवित्र मानते हैं चाहे वह पशु जीवन हो, कीट जीवन हो या पौधे का जीवन हो। फल ही उनका एकमात्र आहार होता है क्योंकि उनका तर्क है कि पौधों पर आधारित आहार ने भी कई लोगों की जान ली है। उदाहरण: बादाम दूध उद्योग के कारण अमेरिका में 50 अरब मधुमक्खियों की मौत हो गयी थी।

सूची हमें क्या बताती है?
पशु क्रूरता की समझ सभी प्रकार के “शाकाहारियों” के बीच एक जैसी नहीं है। शाकाहारीयों के एक समुदाय के लिए जो भोजन नैतिक रूप से सही है वह किसी दुसरे समुदाय के लिए अनैतिक है वहीँ किसी अन्य के लिए पशु क्रूरता। नैतिक और सदाचार रूप से क्या सही है, यह निर्धारित करने के लिए कोई सामान्य मानदंड नहीं है। इसलिए हर व्यक्ति में अलग अलग नैतिकता और सदाचार की अवधारणा पाई जाती है इसलिए यह अवधारणा बहुत हद तक व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। किन्तु हम यह कैसे तय करें कि कौन सही है और कौन गलत?
एक उचित मानदंड की आवश्यकता
जब हमारे पास एक मापदण्ड होता है, तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उचित रूप से क्या सही और क्या गलत है। लेकिन, क्या एक मापदण्ड की तलाश करना सही है? हाँ। आइए देखें क्यों।
हमारा मानव शरीर
आइए थोड़े देर के लिए विषय से हट कर अपने मानव शरीर के बारे में सोचें। हमारा मानव शरीर मांस और पौधे दोनों के उपभोग के लिए अनुकूल है। हमारे दांतों की संरचना और पाचन तंत्र स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि हम सर्वाहारी हैं। आणविक जीव विज्ञान के एक शाकाहारी पीएचडी छात्र ने ख़ुद इस दावे को खारिज किया हैं कि मानव शरीर केवल शाकाहारी के अनुकूल हैं।
पौधों की कोशिका भी कई प्रकार के यौगिकों जैसे भित्ति सेल्यूलोज, हेमिसेल्यूलोज और लिग्निन से बनी होती है। हमें इन यौगिकों को तोड़ने के लिए “सेल्युलेस” नामक एक एंजाइम की आवश्यकता होती है, लेकिन यह एंजाइम हमारे शरीर में अनुपस्थित रहता है और इसलिए, हम इन यौगिकों को पचा नहीं सकते हैं। इस एंजाइम को पैदा करने वाले बैक्टीरिया भी मनुष्यों के आंत में अनुपस्थित हैं। हालांकि, प्रोटीज और लाइपेज जैसे एंजाइम जो मांस को तोड़ने और उसे अवशोषित करने के लिए आवश्यक होते हैं, हमारे शरीर में मौजूद होते हैं।
इस तथ्य से आप क्या समझते है?
मानव शरीर स्वभाव से सर्वाहारी हैं। क्या हमारे मानव स्वभाव और मांस खाने की नैतिकता के बीच कोई विरोध हो सकता है? जवाब न है। आपको आश्चर्य हो सकता है कि क्यों। पढ़ते रहिये।
वस्तुनिष्ठ मानदंड कौन तय कर सकता है?
वस्तुनिष्ठ मानदंड कौन तय कर सकता है? यह समझने के लिए आइए इन आधारों पर विचार करें।
- किसी उत्पाद के निर्माता को ही उस उत्पाद से जुड़ी सारी बातें अच्छी तरह से पता होती है।
- चूंकि निर्माता को उत्पाद से जुड़ी सारी बातें अच्छी तरह से पता होती है, इसलिए वही ये बेहतर मानदंड तय कर सकता है कि उत्पाद के लिए क्या सही है और क्या ग़लत है।
किसी उत्पाद के उपभोक्ता के रूप में सोचने पर, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऊपर दिए गए दोनों बिंदु बहुत तार्किक हैं।
यदि ब्रह्मांड और उसमें मौजूद मनुष्य सहित सभी चीजें, एक सर्वज्ञ और सर्व-बुद्धिमान निर्माता द्वारा बनाई गई हैं, तो उस सर्वज्ञानी निर्माता को ही हमारे बारे में सबसे अच्छा ज्ञान होना चाहिए। इसलिए सृष्टिकर्ता, जिसे हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, वही सबसे बेहतर तरीके से यह तय कर सकता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।
मुसलमान सर्वशक्तिमान ईश्वर और उनके मार्गदर्शन में विश्वास करते हैं
मुसलमानों का मानना है कि:
- ब्रह्मांड और उसमें मौजूद मनुष्य सहित सभी चीज़ें सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा बनाई गई है।
- हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत, इन सारे विषयों पर सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हमें व्यापक मार्गदर्शन प्रदान किया है।
- सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मांसाहारी भोजन करने की अनुमति दी है।
कुरान में ईश्वर कहते हैं:
उसने (ईश्वर ने) तुम्हारे लिए केवल मरे हुए जानवरों का मांस, खून, सुअर का मांस और ऐसे जानवरों का मांस को खाने से मना किया है, जिसे ईश्वर के अलावा किसी और के नाम पर कुर्बान किया गया है।
कुरान अध्याय 2: आयत 173
क्या वे हमारी बनाई हुई चीज़ों को नहीं देखते: हमने उनके लिए मवेशी पैदा किए जो उनके पास रहते हैं? हमने पशुओं को उनके वश में कर दिया है, ताकि उनमें से कुछ पर सवार होकर दूसरों का मांस खा सकें।
कुरान अध्याय 36: छंद 71 और 72
जैसा कि हमने ऊपर देखा, ईश्वर यह तय कर सकते हैं कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है और इस सूची में वैसे आहार शामिल है जिसे हमें खाना चाहिए । मुसलमानों का मानना है कि कुरान ईश्वर का शब्द है और चूंकि कुरान में ईश्वर ने मांसाहारी भोजन खाने की स्पष्ट रूप से अनुमति दी है, इसलिए मुसलमान मांस खाते हैं। अब आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि मुसलमान मांसाहारी भोजन क्यों खाते हैं।
सारांश
- इस्लाम में मांसाहारी खाना अनिवार्य नहीं है। एक शाकाहारी वयक्ति भी बहुत अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी भोजन के लिए कोई धार्मिक प्रतिबद्धता नहीं हैं।
- “शाकाहारी समुदाय” के बीच भी पशु क्रूरता को लेकर कोई एक सहमति नहीं है।
- हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत, इस बात को सर्वशक्तिमान ईश्वर ही सबसे बेहतर तरह से तय कर सकते हैं।
- मुसलमानों का मानना है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मांसाहारी भोजन करने की अनुमति दी है।
- इसलिए मुसलमान मांसाहारी भोजन करते हैं।
- यदि आप “शाकाहारी” आहार का ही पालन करना चाहते हैं, तो आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस्लाम धर्म में इसके लिए कोई रुकावट नहीं है।
अतिरिक्त जानकारी
इस्लाम में जानवरों और पक्षियों के भी अधिकार हैं
1400 साल पहले, जब इंसानों के साथ भी जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता था, उस समाज में इस्लाम ने यह बताया कि जानवरों और पक्षियों के भी अधिकार होते हैं जिनका सम्मान किया जाना चाहिए। जानवरों और पक्षियों के साथ अच्छे व्यवहार के संबंध में पैगंबर मुहम्मद ने कई आदेश दिए गए हैं। हम उनमें से कुछ को यहां प्रस्तुत करना चाहेंगे।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
जानवरों और पक्षियों के साथ किए गए अपने व्यवहार के मामले में भी भगवान से डरो।
हदीस : अबु दावूद
एक जानवर के साथ किया गया अच्छा काम उतना ही सराहनीय है जितना कि एक इंसान के लिए किया गया एक अच्छा काम, जबकि एक जानवर के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार उतना ही बुरा है जितना कि एक इंसान के साथ किया गया।
हदीस : मिश्कातुल मसाबिह
इस्लाम मनोरंजन या खेल के लिए जानवरों / पक्षियों को मारने की अनुमति नहीं देता है
आज हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, वहां मौज-मस्ती और खेल के लिए शिकार करना एक आम बात है आपको जान कर हैरानी होगी इस मनोरंजन के नाम पे बिलियन डॉलर के कई उद्योग चल रहे है। इस्लाम ने आज से 14 सदी पहले ही मनोरंजन के लिए जानवरों और पक्षियों को मारने पर रोक लगा दी थी।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
जो कोई भी मजे के लिए गौरैया या उसके जैसी किसी जीव को मारता है, तो उस हत्या के बारे में भी ईश्वर उससे पूछताछ करेंगे।
हदीस: मुसनद अहमदी
किसी भी जीवित प्राणी को (शिकार के रूप में) लक्ष्य न बनाओ।
हदीस: सही मुस्लिम
हलाल वध
आप को जान कर आश्चर्य होगा कि हलाल वध से जानवर को कम से कम पीड़ा और दर्द होता है। जब गले की नस, श्वासनली और कैरोटिड धमनी को काट दिया जाता है तो मस्तिष्क में तंत्रिका को रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है। जिससे जानवर को पीड़ा का आभास नहीं होता। हालांकि जानवर संघर्ष और लात मारते हुए दिख सकता है, पर ये हरकत पीड़ा के वजह नहीं बल्कि शरीर में रक्त की कमी वाली मांसपेशियों के संकुचन और विश्राम के कारण होता है।
फ्रांस के खाद्य, कृषि और मत्स्य पालन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट यह साबित करती है। जर्मनी के हनोवर में पशु चिकित्सा के निदेशक डॉ विल्हेम शुल्ज़ द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि हलाल वध के दौरान थर्मल दर्द जैसी उत्तेजनाओं की वजह से संघर्ष और लात मारने जैसी गतिविधि में वृद्धि नहीं होती है।
हलाल मांस और झटका मांस के बीच का अंतर देखें।
हलाल वध की तमीज़
पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
ईश्वर ने हर कार्य को दया (और उत्कृष्टता) के साथ करने को कहा है। यदि (जानवरों का) वध भी करना हो तो उसे भी उत्तम तरीके से करना चाहिए इसलिए वध करने से पहले छुरी की धार तेज कर लिया करो और पशु को आराम से रखकर उत्तम तरीक़े से वध करो (ताकि उसे कम से कम तकलीफ़ हो)।
हदीस: सही मुस्लिम
वध के कुछ महत्वपूर्ण शिष्टाचार हैं:
- वध से पहले ईश्वर के नाम का उच्चारण किया जाना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि हम वध केवल इसलिए करते हैं क्योंकि ईश्वर ने इसकी अनुमति दी है।
- चाकू बेहद तेज होना चाहिए। ताकि वध के दौरान अनावश्यक दर्द न हो।
- चाकू को जानवर की नजर से छिपाकर रखना चाहिए।
- किसी जानवर का वध दूसरे जानवर के सामने नहीं करना चाहिए।
- इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जानवर को तनाव न हो और उसे आराम से रखा जाए।
- वध जितनी जल्दी हो सके उतनी तेजी से पूरा किया जाना चाहिए।
इस्लाम खाने में संयम सिखाता है
मांसहारी हो या शाकाहारी भोजन, इस्लाम हमें खाने में संयम सिखाता है।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
खाना इस तरह से खाओ कि पेट का एक तिहाई हिस्सा भोजन से, दूसरी तिहाई पेय पदार्थ से भड़े, और बाकी के एक तिहाई हिस्से को हवा के लिए ख़ाली रहने दो।
हदीस : सुनन तिर्मिदी
हां, मुसलमानों को मांस खाने की अनुमति है, लेकिन उन्हें यह भी सलाह दी जाती है कि वे खाने के मामले में संयम बरते इसपे टूट न परें।
इस्लाम मांस और डेयरी पर आधारित “पूंजीवादी” उद्योग जैसी क्रूर प्रथाओं से घृणा करता है
मांस और डेयरी पर आधारित “पूंजीवादी” उद्योग, ज्यादा से ज्यादा जानवरों को इकठ्ठा करने में जुटा रहता है हालांकि वे जानवर से ज्यादा पैसे को प्राथमिकता देते है। यही कारण है कि ऐसे उद्योग में हम जानवरों को अत्यधिक भीड़ और घुटन की स्थिति में रहते हुए देख सकते हैं, उन्हें कृत्रिम विकास के लिए हार्मोन देते हैं, और उन्हें सबसे क्रूर तरीके से मारते हैं। इस्लाम ऐसे कृत्यों से घृणा करता है और कोई भी मुसलमान जो इस्लाम के आदर्शों पर चलता है, वह पशु क्रूरता के इन बर्बर कृत्यों का कभी समर्थन नहीं करेगा।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
एक बिल्ली के कारण, एक औरत को सजा दी गई और उसे नर्क में डाल दिया गया, क्यूंकि उस औरत ने बिल्ली को तब तक बंद रखा था जब तक कि वह भूख से मर नहीं गई।
हदीस: सही बुखारी
पैगम्बर के कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नर्क का ठिकाना, उन सभी लोगों के लिए भी है जो निर्भीकता से पशु क्रूरता में लिप्त हैं।
पौधे भी दर्द महसूस करते हैं
बहुत से लोग सोचते हैं कि पौधे, जानवरों के विपरीत, दर्द महसूस नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास कोई तंत्रिका तंत्र नहीं है। शाकाहारी लोग प्रसिद्ध रूप से पौधों को संवेदनशील प्राणियों की सूची से बाहर कर देते हैं। नवीनतम अध्ययनों से पता चलता है कि पौधे भी दर्द महसूस करते हैं। नेशनल ज्योग्राफिक का यह लेख कहता है:
जब किसी पौधे को घायल किया जाता हैं, तो वे चेतावनी के संकेत भेजते हैं जो अन्य पत्तियों तक फैल जाते हैं, अलार्म बजाते हैं और अप्रभावित क्षेत्रों के लिए रक्षा तंत्र को सक्रिय करते हैं।
नेशनल ज्योग्राफिक
साइमन गिलरॉय जो विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान प्रयोगशाला चलाते हैं, वो कहते हैं:
पौधे ऐसे दिखते हैं जैसे कि वे बहुत बुद्धिमान हैं—वे सही समय पर सही काम करते हैं, वे पर्यावरण संबंधी जानकारी की एक बड़ी संवेदना को महसूस करते हैं, और वे इसे संसाधित भी करते हैं। लेकिन उनके पास दिमाग नहीं है, सूचना प्रसंस्करण इकाई जो हमें लगता है कि वास्तव में सुरुचिपूर्ण गणना करने के लिए आवश्यक होनी चाहिए।
नेशनल ज्योग्राफिक
क्या आप “प्लांट न्यूरोबायोलॉजी” नामक एक नए शोध क्षेत्र के बारे में जानते हैं?
प्लांट न्यूरोबायोलॉजी एक नया शोध क्षेत्र है जिसका उद्देश्य यह समझना है कि पौधे खुद को विकसित, समृद्ध और बेहतर तरीके से पुन: उत्पन्न करने के लिए, अपने पर्यावरण से प्राप्त जानकारी को कैसे संसाधित करते हैं।
यह शोध क्षेत्र बहुत आधुनिक और तेजी से विकसित हो रहा है। निकट भविष्य में प्लांट किंगडम के बारे में नई और आकर्षक खोजों की उम्मीद की जा सकती है। जो कोई भी पौधों में “दर्द कारक” के विचार को नहीं मानते है, वह ऐसा केवल इसलिए कर रहे होते हैं क्योंकि यह उनकी “विचारधारा” के खिलाफ है। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि, अगर उन्होंने यह बात मान ली कि पौधे दर्द महसूस करते हैं, तो उनकी पूरी विचारधारा ख़त्म हो जाएगी।
क्या केवल शाकाहारी भोजन मनुष्य के लिए पर्याप्त है?
सीधा जवाब है नहीं। यह लेख बताता है कि 7 ऐसे पोषक तत्व हैं जो आमतौर पर शाकाहारी लोगों में और शाकाहारी भोजन में उपलब्ध नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए: विटामिन बी 12 पशु खाद्य स्रोतों जैसे डेयरी उत्पाद, अंडे, मछली और मांस से ही आता है। एक अध्ययन में पाया गया कि शाकाहारी लोगों में आमतौर पर विटामिन बी12 की कमी पाई जाती है। इस प्रकार शाकाहारियों को इस विटामिन का पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए अन्य निवारक उपाय करने पड़ते हैं, जिसमें बी 12 युक्त दवाई या अन्य पूरक का नियमित सेवन शामिल है।
इंडियन डायटेटिक एसोसिएशन (आईडीए) ने दावा किया कि देश में 84 फीसदी शाकाहारियों में प्रोटीन की कमी होती है।
हमारे मस्तिष्क को पशु वसा की जरूरत होती है
हमारे मस्तिष्क को डीएचए नामक वसा की आवश्यकता होती है जो केवल जानवरों के भोजन से मिलती है।
डॉ. जॉर्जिया एडे, यूनिवर्सिटी ऑफ वर्मोंट कॉलेज ऑफ मेडिसिन से मेडिसिन में एमडी, एक पोषण मनोचिकित्सक हैं। वह कहती है:
हमारे मस्तिष्क में वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है। मानव मस्तिष्क का लगभग दो-तिहाई हिस्सा मोटा होता है, और उस वसा का पूरा 20 प्रतिशत एक बहुत ही विशेष ओमेगा -3 फैटी एसिड से बना होता है जिसे डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड या डीएचए कहा जाता है।
डॉ. जॉर्जिया एडे
डीएचए नामक वसा मानव मस्तिष्क के बाहरी आवरण के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है –मस्तिष्क का यह हिस्सा उच्च-क्रम की सोच के लिए में काफ़ी सहायक है। डीएचए के अभाव में, मस्तिष्क में कई जटिल कनेक्शन ठीक से नहीं बन पाते हैं जो निरंतर ध्यान, निर्णय लेने और जटिल समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक होता है।
डॉ. जॉर्जिया एडे
वह उल्लेख करती है कि पौधों के खाद्य पदार्थों में डीएचए नहीं पाया जाता है।
जो लोग शाकाहारी आहार चुनते हैं, उनके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पौधों के खाद्य पदार्थों में डीएचए नहीं पाया जाता है।
डॉ. जॉर्जिया एडे
याद रखें, शैवाल से बनने वाले डीएचए की खुराक न केवल अधिक महंगी होती है, बल्कि इसमें मछली या क्रिल तेल की तुलना में डीएचए की सांद्रता भी कम होती है।
शुद्ध शाकाहारी भोजन नुक्सानदेह भी हो सकता है
डॉ. असीम मल्होत्रा यूके में कार्डियोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है “मेरी माँ के शाकाहारी भोजन ने उनकी मृत्यु में योगदान दिया”, इस लेख से हम सभी को सीखना चाहिए”, वे कहते हैं:
शाकाहारी भोजन लेने के वजह से मेरी माँ को विटामिन बी 12 और आयरन की कमी हो गई उन्हें सप्लीमेंट लेने की आवश्यकता थी। प्रोटीन की कमी के कारण सरकोपेनिया (मांसपेशियों में गिरावट) हो गई, जिसने उसकी गतिशीलता को और भी सीमित कर दिया।
डॉ. असीम मल्होत्रा
वह आगे यह भी कहते हैं कि:
यह ध्यान देने योग्य है कि भारत, विश्व की तुलना में अधिक शाकाहारी लोगों के साथ, “दुनिया की मधुमेह राजधानी” बनती जा रही है।
डॉ. असीम मल्होत्रा
वह एक प्रख्यात आहार विशेषज्ञ से सीखी गई एक दिलचस्प जानकारी का वर्णन करते है।
जैसा कि न्यूजीलैंड के सबसे प्रख्यात आहार विशेषज्ञ डॉ कैरीन ज़िन ने मुझे बताया: “कैलोरी के लिए कैलोरी, मांस सब्जियों की तुलना में अधिक प्रोटीनयुक्त और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। बेशक, कोई भी कितना भी स्वस्थ शाकाहारी भोजन कर सकता है लेकिन दुनिया के अधिकांश शाकाहारी स्पष्ट रूप से इसका पालन नहीं कर रहे हैं।
डॉ. असीम मल्होत्रा
पूर्व शाकाहारी की कहानियां
जो लोग “शाकाहार के चैंपियन” थे, उन्हें भी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण यू टर्न लेना पड़ा और मांस खाना शुरू कर दिया। वीगनवाद को बढ़ावा देने वाली एक पूर्व ब्लॉगर विरपी मिक्कोनेन का दावा है कि उन्हें केवल 38 साल की उम्र में रजोनिवृत्ति का अनुभव होने के कारण मांस की ओर रुख करना पड़ा। लाखों ग्राहकों के साथ योवाना मेंडोज़ा आयर्स का दावा है कि उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं के कारण मांस खाना शुरू कर दिया था। “वीगन प्रिंस” उपनाम से टिम शिएफ़ इस बारे में बात करते हैं कि उन्होंने शाकाहार क्यों छोड़ दिया।
हम भली भांति यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि शाकाहारी या शाकाहारी भोजन हर किसी के लिए नहीं है। मांसाहारी भोजन के मामले में भी यही स्थिति है। इसलिए लोगों को वही खाना चाहिए जो उनके लिए सबसे अच्छा हो।
शाकाहारी और अहिंसा
कुछ शाकाहारियों का दावा है कि पौधे आधारित आहार के कारण शाकाहारी लोग बहुत शांतिपूर्ण और अहिंसक होते हैं। दूसरी ओर, मांस खाने वाले लोग आक्रामक और हिंसक होते हैं। ऊपर से देखने पर, यह तर्क आकर्षक लग सकता है, लेकिन जब हम आंकड़ों को देखते हैं तो यह बिलकुल अलग नज़र आता है। शांति के नोबेल पुरस्कार के विजेताओं की सूची में मांसाहारी लोग ही बहुमत में हैं।
क्या आप जानते हैं कि लाखों बेगुनाहों का कत्लेआम करने वाला हिटलर शाकाहारी था? नैतिकता को आहार से जोड़ कर देखना सही नहीं है बल्कि यह व्यक्ति की प्रतिबद्धता से जुड़ी है। इसलिए जो सही है वही करें और जो गलत है उससे बचें।
अगर आप शाकाहारी बनना चाहते हैं? तो इसे पहले ज़रूर देखें!
यह वीडियो डॉ. नताशा कैंपबेल-मैकब्राइड का है, जिनके पास न्यूरोलॉजी और ह्यूमन न्यूट्रिशन दोनों में मेडिसिन और पोस्टग्रेजुएट डिग्री है।
“शाकाहारी” होना आपकी पसंद है
हम मानते हैं कि भोजन के विकल्प बहुत ही व्यक्तिगत हैं। व्यक्तियों की अपनी आहार प्राथमिकताएं होती हैं और इन व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का सम्मान किया जाना चाहिए। लोगों को उनके आहार के आधार पर आंकना सही नहीं है और किसी को सिर्फ़ इस वजह से बुरा समझना भी सही नहीं है कि वह हमारे जैसे आहार क्यों नहीं लेते हैं।
जियो और जीने दो !