इस विषय पर कुरान के कई श्लोकों में बात की गई हैं। जैसे की 3:28, 3:118, 4:144, 5:51 और 58:22। मगर इन श्लोकों का विश्लेषण, कुरान के संदर्भ और पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) की शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, क्योंकि ये दोनों चीज़े ही इस्लामी विश्वास की आधारशिला हैं और इन्ही पर इस्लामी मान्यताओं की नींव टिकी हैं।
श्लोक – 3:28, 4:144 और 5:51 का विश्लेषण
आइए सबसे पहले इन श्लोकों के अनुवाद को देखते हैं।
ईमान वालों को चाहिए कि वें मोमिनों (विश्वासी) के बजाय काफिरों को अपना सहयोगी (औलिया) न बनाए। और जो कोई [तुम में से] ऐसा करता है उसका अल्लाह से कोई लेना-देना नहीं है, जब तक कि वह उनके गलत कामों से बचने के लिए खुद एहतियात न करे। परमेश्वर आपको चेतावनी देता है कि उससे सावधान रहें, क्योंकि परमेश्वर की ओर ही आप लौट कर आएंगे।
कुरान अध्याय 3: श्लोक 28
ऐ ईमान वालो, ईमान वालों की जगह काफिरों को अपना औलिया (सहयोगी) मत समझो। क्या तुम ईश्वर को अपने खिलाफ एक स्पष्ट मामला देना चाहते हो?
कुरान अध्याय 4: आयत 144
ऐ ईमान वालो, यहूदियों और ईसाइयों को अपना औलिया (सहयोगी) मत समझो। वे [वास्तव में] एक दूसरे के सहयोगी हैं। और तुम में से जो उन्हें सहयोगी बना लें, तो निश्चित तौर पर वह उनमें से [एक] है। निसंदेह, परमेश्वर गलत काम करने वालों का मार्गदर्शन नहीं करता है।
कुरान अध्याय 5: श्लोक 51
उपरोक्त श्लोकों का भाषाई विश्लेषण
ऊपर बताए गए श्लोकों में अरबी शब्द “अवलिया” का प्रयोग किया गया है जिसे कुछ अनुवादकों ने “मित्र” के अर्थ में अनुवाद किया है। शब्द “अवलिया” अरबी शब्द “वली” का बहुवचन रूप है जिसके कई अर्थ होते हैं जैसे: मित्र, रक्षक, सहयोगी, सहायक, अभिभावक आदि।
जब किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ हों तो हमें वह अर्थ लेना चाहिए जो संदर्भ के अनुकूल हो। यह किसी भी भाषा के लिए मान्य होता है।
इस बात को अच्छे से समझने के लिए हम अंग्रेजी के एक शब्द “बीट” पर विचार करें। इस शब्द के कई अर्थ होते हैं, सबसे सामान्य अर्थों में से एक है: “बार-बार प्रहार करना ताकि दर्द दिया जा सके”। हालाँकि, “बीट” शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है।
रोजर फेडरर ने विंबलडन फाइनल में नडाल को हराया
उदाहरण के लिए; यदि अंग्रेजी में आपसे कहा जाए ” Roger Federer beat Nadal in the Wimbledon final “, तो आप क्या समझेंगे? क्या आप समझेंगे कि फेडरर ने दर्द देने के लिए नडाल को मारा या आप समझेंगे कि फेडरर ने फाइनल गेम में नडाल को हराया था? जाहिर है, आप बाद वाले अनुवाद के साथ जाएंगे।
यदि कोई “बीट” के अर्थ का उपयोग “बार-बार हिट करने के लिए या दर्द देने के लिए” के रूप में करने पर जोर दे और यह दावा करे कि समाचार पत्रों ने बताया कि फेडरर ने नडाल को बार-बार दर्द देने के लिए मारा, तो आप उसकी इस दावे को यह कहते हुए खारिज कर देंगे कि वह गलत अर्थ को ले रहा है इस गलती को सुधारने के गर्ज से आप उसे कॉल भी कर सकते हैं और उसे स्पष्ट रूप से कह सकते है कि वो सिर्फ एक बेतुका दावा कर रहा है।
कृपया ऊपर उल्लेख किए गए श्लोकों के विश्लेषण करते समय भी इस बात को ध्यान में रखें।
ऊपर बताए गए श्लोकों में “अवलिया” शब्द का क्या अर्थ है? यह जानने से पहले, आइए हम एक हदीस (पैगंबर की बातों का संग्रह) पे नज़र डालें।
पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) ने कहा:
वली के बिना निकाह नहीं होता।
हदीस : सही बुखारी
इस संदर्भ में “वली” शब्द का अर्थ है “अभिभावक”। हदीस को इस रूप में समझना बिलकुल गलत होगा कि “दोस्त के बिना निकाह नहीं होता।” जबकि इसका सही अनुवाद होगा अभिभावक के बिना निकाह नहीं होता।
अब हम अब ऊपर बताए गए कुरान की आयतों पर वापस जाते हैं, तो यहाँ “अवलिया” (वली का बहुवचन) का सही अर्थ “रक्षक” या “सहयोगी” के रूप में है न कि “मित्र”। इस निष्कर्ष का आधार वह संदर्भ है जिसमें ये आयतें प्रकट की गई थी। यह आयतें उन लोगों के बारे में बात करती हैं जो मुस्लिम होने का दावा तो करते थे, लेकिन उन काफिरों की सुरक्षा चाहते थे जो मुसलमानों के साथ युद्ध कर रहे थे और उन्हें मारना चाहते थे।
नोट: “मित्र” शब्द बहुत सामान्य है और स्थिति के आधार पर इसके कई अर्थ हो सकते हैं। इस संदर्भ में, हम “दोस्ती” का मतलब गैर-मुसलमानों के लिए धर्मी, दयालु और न्यायपूर्ण व्यवहार करना मानते हैं।
श्लोक – 3:118 का विश्लेषण
ऐ ईमान वालो, अपने सिवा औरों को अपना शुभचिंतक न समझो, क्यूँकि वे तुम्हें चोट पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। वह चाहते हैं कि आपको तकलीफ़ पहुंचे। उनकी बातों में घृणा स्पष्ट रूप से ज़ाहिर होती है, और जो वह अपने सीने में छिपाते हैं वह और भी अधिक [घृणित] है। यदि आप समझदारी से सोचेंगें तो हमने आपके लिए निश्चित रूप से संकेत स्पष्ट कर दिए हैं।
कुरान अध्याय 3: आयत 118
आयत के अनुवाद को पढ़ने मात्र से यह स्पष्ट हो जाता कि यह आयत उन काफ़िरों के बारे में है जो मुसलमानों को नुकसान पहुँचाना चाहते थे।
श्लोक – 58:22 का विश्लेषण
तुम ऐसे लोगों को नहीं पाओगे जो ईश्वर और अंतिम दिन पर विश्वास करते हैं एवं ऐसे लोगों के लिए स्नेह भी रखते हैं जो ईश्वर और उसके पैगंबर के विरोधी हैं, भले ही वे उनके पिता या उनके बेटे या उनके भाई या उनके रिश्तेदार ही क्यों न हों। उन्होंने अपने दिलों में विश्वास का फैसला किया है और हमने उन्हें अपनी आत्मा से सहयोग किया है। हम उन्हें ऐसे बाग़ों में दाख़िल कर देंगे जिनके नीचे नदियाँ बहती हैं, जिनमें वे हमेशा रहेंगे हैं। ईश्वर उनसे बहुत प्रसन्न है, और वे उस पर प्रसन्न हैं – वे ईश्वर के पक्ष वाले हैं। निस्संदेह, ईश्वर के पक्ष वाले ही सफल होंगे।
कुरान अध्याय 58: आयत 22
कुरान की ये आयतें बद्र की युद्ध के समय प्रकट हुई थी जब इस्लाम के दुश्मन, मुसलमानों को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहते थे और इसी मकसद से एक बड़ी सेना के साथ आए थे जो मुसलमानों की संख्या से तीन गुना बड़ी थी। ऐसे परिस्तिथि में ईश्वर, इन आयतों में मुसलमानों की सराहना करते हैं क्योंकि उनके परिजनों और रिश्तेदारों के प्रति स्नेह ने उन्हें सच्चाई और न्याय के लिए खड़े होने से नहीं रोका।
कुरान सहित किसी भी पुस्तक का विश्लेषण समग्र रूप से किया जाना चाहिए, न कि केवल टुकड़ों में। आइए अब देखें कि कुरान गैर-मुसलमानों के प्रति दयालु और न्यायपूर्ण व्यवहार के बारे में क्या कहता है।
हे ईमान वालो, परमेश्वर के पक्ष में दृढ़ बने रहो, न्याय के साक्षी बनो, और किसी भी लोगों की दुश्मनी आपको न्याय से भटकने के लिए प्रेरित न करें। न्यायपूर्वक कार्य करो, जो धार्मिकता के अधिक निकट है। और परमेश्वर से डरो; निश्चित तौर पर परमेश्वर भली-भाँति जानता है कि तुम क्या करते हो।
कुरान अध्याय 5: आयत 8
निश्चित तौर पर ईश्वर तुम्हे न्याय, दया और अपनों और नातेदारों के साथ भलाई करने का आदेश देता है, और वह तुम्हे हर उस चीज़ से रोकता है जो अनैतिक, दुष्ट और दमनकारी हो। वह तुम्हें उपदेश देता है कि तुम सावधान रहो।
कुरान अध्याय 16: श्लोक 90
इन आयतों से यह स्पष्ट होता है कि भले ही मुसलमान किसी समुदाय या लोगों के समूह को नापसंद ही क्यों न करते हों तब भी मुसलमानों को कभी भी अन्यायपूर्ण या अनुचित होने की अनुमति नहीं दी गई है,
इससे आगे बढ़कर, ईश्वर कुरान में कहते हैं:
अल्लाह तुम्हें इस बात से नहीं रोकता है कि तुम उन पर दया करो और उनके प्रति न्यायी बनो जिन्होंने न तो धर्म के खातिर तुमसे लड़ाई की और न तुम्हें अपने घरों से निकाल दिया। निश्चित तौर पर अल्लाह उन लोगों से प्रेम करता है जो न्यायसंगत हैं।
कुरान अध्याय 60: आयत 8
ऊपर के श्लोकों में “धर्मी” के लिए अरबी का “तबरू” शब्द का प्रयोग किया गया है। “तबरू” का मूल शब्द “बिर” है। “बिर” शब्द का प्रयोग माता-पिता के साथ उचित व्यवहार जैसे उच्चतम धार्मिकता के लिए किया जाता है। उदाहरण: “बिरुल वालिदैन”, जिसका अर्थ है “माता-पिता के प्रति धार्मिकता”। पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) ने “बिरुल वालिदैन” शब्द का इस्तेमाल किया जब उन्होंने माता-पिता के प्रति धार्मिकता के बारे में बात की।
तो अब, आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि ईश्वर मुसलमानों को न्यायपूर्ण होने और गैर-मुसलमानों के साथ उच्चतम स्तर के धार्मिक व्यवहार का विस्तार करने से नहीं रोकता है। बल्कि गैर-मुसलमानों के साथ उच्चतम स्तर के व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
पड़ोसियों के साथ मामला
पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) ने कहा:
जिब्रईल (फ़रिश्ता) ने मुझे पड़ोसियों के साथ दयालु और विनम्रता से व्यवहार करने के विषय में इतनी शिफारिश कर रहे थे कि एक पल मुझे ऐसा लगने लगा कि अब वह मुझे उनको मेरा उत्तराधिकारी बनाने का आदेश दे देंगे
हदीस
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह नहीं कहा कि न सिर्फ़ मुस्लिम पड़ोसियों के साथ दया और विनम्रता से पेश आएं बल्कि सभी पड़ोसियों के साथ दयालु और विनम्रता से पेश आना चाहिए।
उम्मीद करते है कि अब आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि ईश्वर मुसलमानों को धर्मी होने और सभी लोगों के साथ उनकी धार्मिक मान्यताओं की परवाह किए बिना, न्याय और दया के साथ व्यवहार करने का निर्देश देता है।