ईश्वर कौन है?
ईश्वर श्रृष्टि का विधाता है जिसने इस ब्रह्मांड और इसमें पाए जाने वाले सभी चीज़ों को बनाया है।
आइए अब पता करते हैं कि क्या सच में ब्रह्मांड का कोई रचेता है?
क्या यह ब्रह्मांड हमेशा से अस्तित्व में था या क्या किसी समय में इस ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी?
वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मांड की आयु 13.8 अरब वर्ष है। अगर ब्रह्मांड अनंत काल से आस्तित्व में रहा होता, तो क्या हम इसकी की आयु को माप सकते? बिलकूल नही, क्योंकी गणित के अनुसार हम अनंत की चीज़ों को नहीं माप सकते है। उदाहरण के लिए, यदि आपके जीवन की शुरुआत कब हुई ये पता नहीं हो, तो क्या कोई आपकी उम्र को माप पाएगा? अब जब हमारे पास यह तथ्य है कि ब्रह्मांड की भी एक उम्र है, तो हमें यह भी स्पष्ट हो जाता है कि किसी समय में इसकी शुरुआत भी हुई थी।
क्या विज्ञान बता सकता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई?
जैसा की नास्तिक लोग हर चीज के लिए “वैज्ञानिक” विश्लेषण में विश्वास करते हैं। इससे पहले कि हम यह सवाल करें कि क्या विज्ञान हमें बता सकता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई, हमें समझना चाहिए कि “विज्ञान” क्या है।
“विज्ञान” क्या है?
प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार विज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है:
प्राकृतिक और भौतिक दुनिया की संरचना और व्यवहार के बारे में वो ज्ञान, जिसे तथ्यों के आधार पर साबित किया जा सके, उदाहरण के लिए प्रयोगों द्वारा
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी
ऊपर बताए गए विज्ञान की परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि, विज्ञान प्राकृतिक और भौतिक दुनिया का अध्ययन है, इससे यह बात समझ में आती है कि विज्ञान ब्रह्मांड के दायरे में काम करता है।
ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई, यह जानने के लिए हमें यह जानना होगा कि ब्रह्मांड के शुरू होने से पहले क्या हुआ था, यानी ब्रह्मांड के बाहर क्या हुआ था। ऐसा इसलिए है क्योंकि ब्रह्मांड के बनने का “कारण” ब्रह्मांड के बाहर होना चाहिए।
क्या ‘विज्ञान’ जो केवल ब्रह्मांड के दायरे में काम करता है का उपयोग कर उन कारणों का पता लगाया जा सकता है जो ब्रह्मांड के बाहर मौजूद हो ? जवाब न होगा। चूंकि एक उपकरण के रूप में “विज्ञान”, ब्रह्मांड के बाहर मौजूद “कारणों” को पता लगाने में असमर्थ है, इसलिए हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति को जानने के लिए एक तार्किक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
ब्रह्मांड के उत्पत्ति का कारण खोजने के लिए तार्किक दृष्टिकोण
आइए ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विभिन्न संभावनाओं को पता करने के लिए तर्क का उपयोग करें। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के लिए केवल दो तार्किक संभावनाएं हो सकती हैं।
- ब्रह्मांड ने स्वंय खुद को बना लिया होगा।
- किसी ने ब्रह्मांड का निर्माण किया है।
आइए इन दोनो संभावनाओं की जांच करें।
क्या ब्रह्मांड खुद को स्वंय बना सकता है?
क्या कोई चीज जो कभी अस्तित्व में थी ही नहीं, वह स्वयं को बना सकती है? इसका उत्तर है नहीं होगा। क्या इस बात का कोई अर्थ है कि “आपने स्वयं को जन्म दिया”? नहीं। यह कहना कि “ब्रह्मांड ने स्वयं को खुद बनाया” यह कहने के समान है कि “आपने स्वयं को जन्म दिया”। तो, हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि ब्रह्मांड खुद को स्वयं नहीं बना सकता।
‘किसी’ ने ब्रह्मांड का निर्माण किया?
अब हमारे पास केवल एक ही संभावना रह जाती है, जो यह है: ‘कुछ’ तो होगा जिससे ब्रह्मांड की रचना हुई होगी। हम इस ‘कुछ’ को ही ईश्वर कहते हैं। अब यहाँ किसी के मन में तत्काल दूसरा प्रश्न उठ सकता है कि ” ईश्वर को किसने बनाया?” आइए इस प्रश्न पर चर्चा करें।
ईश्वर को किसने बनाया?
हम किसी चीज की शुरुआत और अंत को मापने के लिए ‘समय’ का उपयोग करते हैं। यदि ‘समय’ नहीं है, तो किसी भी चीज़ की न तो शुरुआत होगी न ही अंत। इस ब्रह्मांड में सब कुछ समय पर निर्भर है; इसलिए उन सभी का आरंभ और अंत तय होता है।
ब्रह्मांड की तरह, ‘समय’ भी एक समय में अस्तित्व में आया और इसकी शुरुआत हुई। तो, ब्रह्मांड की तरह, ‘समय’ का शुरुआत भी ‘कुछ’ के कारणों से किसी के द्वारा हुआ होगा क्योंकि ‘समय’ भी अपने आप अस्तित्व में नहीं आ सकता। तो ईश्वर, जिसके पास ब्रह्मांड की शुरुआत का कारण है, ‘समय’ की शुरुआत का कारण भी उसी के साथ जुड़ा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अगर ईश्वर समय के भीतर है, तो इसका मतलब होगा कि समय के किसी काल में उसकी शुरुआत हुई होगी। यदि ईश्वर की शुरुआत हुई है, तो ईश्वर की शुरुआत के लिए कोई कारण भी होना चाहिए और कारण के कारण भी स्पष्ट होना चाहिए क्योंकि सब कुछ ‘समय चक्र ‘ के भीतर हो रहा है। यदि इन “कारणों” की श्रृंखला समाप्त नहीं होती है, तो यह अनंत रूप से चलती रहेगी और किसी भी चीज़ की रचना संभव नहीं होगा। इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं।
श्रीमान ‘ए’ एक मछुआरा है जिसे मछली पकड़ने का काम शुरू करने के लिए श्री ‘बी’ से अनुमति की आवश्यकता होती है।
श्रीमान ‘बी’ को श्री ‘सी’ से अनुमति की आवश्यकता है।
श्रीमान ‘सी’ को श्री ‘डी’ से अनुमति की आवश्यकता है।
श्रीमान ‘डी’ को श्री ‘ई’ से अनुमति की आवश्यकता है।
श्रीमान ‘ई’ को श्री ‘एफ’ से अनुमति की आवश्यकता है और
श्री ‘एफ’ को श्री ‘जी’ से अनुमति की आवश्यकता है।
यदि यह श्रृंखला बिना अंत के इसी तरह जारी रहती है, तो क्या श्रीमान ‘ए’ को कभी श्री ‘बी’ से आवश्यक अनुमति मिलेगी? जवाब न होगा।
ऊपर के उदाहरण की तरह, यदि ईश्वर ‘समय’ के भीतर है, तो कारणों की श्रृंखला अनंत रूप से चलती रहेगी और जिसके परिणाम स्वरूप ब्रह्मांड का निर्माण संभव नहीं हो सकता था। लेकिन, ब्रह्मांड का निर्माण एक वास्तविकता है। तो ईश्वर, जो ब्रह्मांड की शुरुआत का कारण है, ‘समय’ से परे है और ‘समय’ का कारण भी है।
ईश्वर जो ‘समय’ से परे है, उसका कोई शुरुआत या अंत नहीं हो सकता। इसलिए यह पूछना व्यर्थ है कि ईश्वर को किसने बनाया।
निष्कर्ष
- ब्रह्मांड की आयु मापी जा सकती है और इसलिए ब्रह्मांड की तयशुदा शुरुआत होगी।
- ब्रह्मांड स्वयं खुद को नहीं बना सकता, इसलिए ‘कुछ’ तो ऐसा था जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ।
- इस ‘कुछ’ को ही हम ईश्वर कहते हैं।
- ब्रह्मांड की तरह, ‘समय’ भी अस्तित्व में आया।
- ईश्वर ‘समय’ के भीतर नहीं हो सकता क्योंकि यह धारणा हमें कारणों के अनंत चक्र की ओर ले जाती है।
- ईश्वर ‘समय’ से परे है और इसलिए, ईश्वर का कोई शुरुआत या अंत नहीं है।
- यह पूछना व्यर्थ है कि ‘ईश्वर को किसने बनाया?’ क्योंकि ईश्वर की कोई शुरुआत या अंत नहीं है।