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    क्या हलाल मांस सच में एक गंभीर समस्या है?

    हलाल मीट किसी पर थोपा नहीं जाता। गैर-मुसलमानों के पास हमेशा झटका मांस चुनने का विकल्प होता है। वास्तव में, उत्तर भारत में कई लोग, विशेष रूप से पंजाब में, झटका मांस का विकल्प चुनते हैं। कोई कानून या नियम रेस्तरां और होटलों को हलाल मांस परोसने के लिए मजबूर नहीं करता है।

    इस सवाल का जवाब देने से पहले, आइए समझते हैं कि हलाल मांस और झटका मांस के बीच क्या अंतर है?

    हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है “अनुमेय”। जब एक बकरी या भेड़ या चिकन को किसी विशेष तरीक़े से वध किया जाता है, तो इसे “हलाल या अनुमेय” मांस कहते है।

    हलाल मांस बनाम झटका मांस – क्या अंतर है?

    हलाल पशुवध

    पशुवध करने की “हलाल” विधि में, बकरी या भेड़ या चिकन के सर को उसके धड़ से पूरी तरह अलग करने के बजाए सिर्फ उसके गले के जुगुलर नस, पवन पाइप और कैरोटिड धमनी को काट दिया जाता है एवं जानवर के सभी रक्त को पूरी तरह से बाहर निकलने दिया जाता है।

    झटका पशुवध

    झटका का अर्थ है “तत्काल”। वध की “झटका” विधि में, बकरी या भेड़ या चिकन को एक ही कट या स्टंटिंग के साथ तुरंत मार दिया जाता है।

    कौन सा बेहतर है – हलाल मांस या झटका मांस?

    इस तरह के सवाल को निष्पक्ष रूप से देखा जाना चाहिए न की भावनात्मक रूप से । आइए देखते हैं कि विशेषज्ञों ने क्या कहा है।

    मैसूर के केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान में मांस प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डॉ वी के मोदी कहते हैं:

    हलाल विधि द्वारा वध किए गए जानवर के शरीर से अधिकांश रक्त बाहर निकल जाते है, जो कि स्वच्छता एवं गुणवत्ता के लिए बहुत ज़रूरी है। झटका विधि में, जानवर के शरीर में खून के थक्के जमने की संभावना अधिक होती है। खून में मौजूद कीटाणु मांस को खराब कर सकता है यदि इसे कुछ दिनों के लिए बिना पकाए रखा जाए तो इसमें मांस के खराब होने की संभावना ज्यादा होती है

    नई दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सलाहकार पोषण विशेषज्ञ डॉ करुणा चतुर्वेदी कहती हैं:

    हलाल मांस को ज्यादा स्वच्छ माना जाता है क्योंकि यह विधि पशुवध के बाद, जानवर की धमनियों से रक्त निकलने में ज्यादा प्रभावी होता है, जिससे रक्त में मौजूद अधिकांश विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते है क्योंकि जानवर का हृदय वध के बाद भी कुछ देर के लिए पंप करता रहता है। झटका विधि में, जानवर के शरीर से सभी रक्त बाहर नहीं निकल पाते है, जिससे मांस के ख़राब और सूख जाने एवं उसमे विषाक्त पदार्थ पाए जाने की संभावना भी ज्यादा होती है

    Science of Meat – Times of India

    क्या हलाल वध ज्यादा क्रूर है?

    जुगुलर नस, विंडपाइप और कैरोटिड धमनी कट जाने से मस्तिष्क में तंत्रिका को रक्त की आपूर्ति रुक जाती है पर पूरे शरीर से निरंतर रक्त बाहर निकलता रहता है चूँकि मस्तिष्क हृदय को बार बार पंप करने का निर्देश देता रहता है। रक्त का निरंतर प्रवाह जारी रहने की वजह से जानवर को काफ़ी कम दर्द महसूस होता है। हालाँकि हम जानवर को इस स्तिथि में छटपटाते हुए और पांव को हिलाते हुए देखते हैं लेकिन यह किर्या शरीर में रक्त की कमी के वजह से मांसपेशियों के संकुचन और विश्राम के कारण होता है और हैरानी की बात ये है कि इस पूरे प्रक्रिया में दर्द का अनुभव काफ़ी कम होता है।

    क्या इस विषय पे कोई विवाद होना चाहिए?

    अगर कोई व्यक्ति ऊपर बताए गए विशेषज्ञों के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं, तो भारत में उनके पास झटका मांस का चयन करने का विकल्प हमेशा खुला है। उत्तर भारत में, विशेष रूप से पंजाब में कई लोग झटका मांस का सेवन करना ज्यादा पसंद करते हैं। हमें पता होना चाहिए कि भारत में कोई ऐसा कानून या नियम नहीं है जो रेस्तरां और होटलों को सिर्फ हलाल मांस परोसने के लिए मजबूर करे। जब एक रेस्तरां झटका मांस परोसने के लिए स्वतंत्र हैं, तो गैर-मुस्लिमों को इस बात की चिंता होनी ही नहीं चाहिए कि उन्हें हलाल मांस खाने लिए कोई मजबूर कर सकता है।

    क्या हलाल मांस हिंदुओं के लिए बेरोजगारी का कारण बनता है?

    कुछ लोगों का आरोप है कि हलाल मांस “आर्थिक जिहाद” का एक रूप है क्योंकि यह हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों के लिए मांस के कारोबार, या होटल और रेस्तरां के कारोबार को प्रभावित करता है। जबकि इस बात में तिनका के बराबर भी सच्चाई नहीं है। मांस की दुकानें गैर-मुस्लिम और मुसलमान दोनों के स्वामित्व में हैं। मांसाहारी हिंदू (75%) और अन्य मांसाहारी गैर-मुस्लिम (5%) मुसलमानों (15%) की तुलना में अधिक संख्या में हैं।

    जैसा कि हम पहले ही ऊपर उल्लेख कर चुके हैं, मांसाहारी हिंदू (75%) हमेशा गैर-मुस्लिम मांस की दुकानों से झटका मांस खरीद सकते हैं यहाँ कोई भी उन्हें हलाल मांस खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। चूंकि मांसाहारी हिंदु उपभोक्ताओं का आधार बहुत बड़ा है और उनके पास झटका मांस खरीदने की पूर्ण स्वतंत्रता है, इसलिए यह कहना बिल्कुल ग़लत होगा कि हलाल मांस हिंदुओं और गैर-मुस्लिमों के मांस के कारोबार को प्रभावित करता है। यहां तक कि फार्मास्युटिकल उत्पादों, खाद्ध उत्पादों, सौंदर्य प्रसाधनों आदि में भी गैर-मुस्लिम उपभोक्ताओं का आधार (लगभग 80%) मुसलमानों (लगभग 15%) की तुलना में हमेशा से ज्यादा रहा है। यदि आप एक खाद्य उत्पाद कंपनी चलाते हैं, तो आप किसकी बात सुनेंगे – 80% उपभोक्ताओं का या 15% उपभोक्ताओं का? जाहिर है, 80% उपभोक्ताओं का जो गैर-मुस्लिम या हिंदू हैं। तो मुझे बताएं, सिर्फ 15% उपभोक्ताओं का आधार उन कंपनियों पर अपनी “हलाल मांस” की विचारधारा को कैसे थोप सकते है जो बहुसंख्यक उपभोक्ताओं (80%) की पसंद के लिए झटका मांस का कारोबार करना चाहते हो?

    अब आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि “हलाल मांस” के माध्यम से “आर्थिक जिहाद” का यह प्रचार केवल एक झूठ मात्र है।


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