“एक ईश्वर या कई ईश्वर?” के प्रश्न का सरल उत्तर ये है कि ” ईश्वर केवल एक ही है।”, हो सकता है कि इस उत्तर से आपको आश्चर्य हो “पर ऐसा क्यों?” चलिए पता करते हैं।
अगर दो या उससे अधिक ईश्वर होते तो …
आइए हम बहु ईश्वरवाद का सबसे सरल मामला लें जहां दो भगवान होंगे। तो अगर इन दोनों देवताओं को किसी मुद्दे पर फैसला करना हो, तो निम्नलिखित तीन परिदृश्यों में से कोई एक परिदृश्य उत्पन्न होगा।
परिदृश्य 1: दोनों भगवान में किसी मुद्दे पर “असहमती” हो जाए।
जब किसी मुद्दे पर दोनों देवताओं में असहमती हो जाए, तो वह कार्य कभी निष्पादित नहीं हो पाएगा।
यदि ब्रह्मांड की रचना को लेकर इन देवताओं के बीच असहमति होती तो ब्रह्मांड कभी अस्तित्व में आता ही नहीं। यहां तक कि हमारे दैनिक जीवन में आने वाली एक साधारण सी समस्या भी देवताओं के बीच असहमति एवं अराजकता का कारण बन जाएगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक हिंदू और एक मुस्लिम, नौकरी के लिए इंटरव्यू के लिए जाते हैं, जहां केवल एक व्यक्ति को ही नौकरी मिल सकती है। दोनों काम के लिए अपने-अपने भगवान से प्रार्थना करते हैं। अगर हिंदू और मुसलमान दोनों का अपना-अपना खुदा होता, तो कौन-सा खुदा नौकरी देता और किसे देता? अगर हिंदू भगवान हिंदू को नौकरी देने का फैसला करता है और मुस्लिम भगवान मुस्लिम को नौकरी देने का फैसला करता है, तो दोनों देवताओं के बीच असहमति हो जाएगी और इस स्तिथि में किसी को नौकरी नहीं मिलेगी।
दुनिया में, विभिन्न धर्मों के लाखों लोग रोज़ कुछ न कुछ प्रार्थनाएं करते हैं। यदि कई भगवान होते, तो उनके बीच रोजाना लाखों मतभेद होने की संभावना उन्पन्न होती रहती जो संसार को पूर्ण अराजकता और विनाश की ओर ले जाती।
कुरान में ईश्वर कहते हैं:
यदि स्वर्ग और पृथ्वी में एक ईश्वर के अलावा कोई और देवता होता, तो आकाश और पृथ्वी दोनों में अराजकता एवं भ्रम की स्तिथि होती। परमेश्वर ही, सिंहासन का स्वामी, उन बातों से बहुत ऊपर है जो दावा वे किया करते हैं।
कुरान अध्याय 21 की छंद 22
परिदृश्य 2: दोनों भगवान हमेशा सभी मुद्दों पर “सहमत” हो जाए।
अगर हम यह मान लें कि दो भगवान हमेशा सभी मुद्दों पर सहमत हो जाते हैं, तो फिर हमें दो भगवानों की आवश्यकता क्यों है? उदाहरण के लिए, यदि हमारे पास एक स्कूल के दो प्रधानाध्यापक हैं जो हमेशा एक ही निर्णय लेते हैं, तो हमें दो प्रधानाध्यापकों की आवश्यकता क्यों होगी? स्कूल का संचालन करने लिए एक ही प्रधानाध्यापक पर्याप्त होगा क्योंकि यहाँ दो प्रधानाध्यापकों के होने के स्तिथि में भी कोई अलग सा निर्णय नहीं लिया जा रहा है।
अगर हम इस परिदृश्य को दुनिया में होने वाले अरबों मुद्दों पर आप्लाई करें, तो हमारे पास हर मुद्दों पर बिना किसी असहमति या संघर्ष के सभी देवताओं की सहमति होगी। ये बात न केवल एक असंभव सी स्तिथि की ओर ईशारा करती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि सभी मुद्दों पर सहमत होने वाले इतने सारे देवताओं की उपस्थिति का कोई उद्देश्य नहीं है।
परिदृश्य 3: दो भगवान असहमत हो और एक भगवान दूसरे भगवान के समक्ष अपने निर्णय को “सबमिट” करते हैं।
यदि ‘ईश्वर 1’, ‘ईश्वर 2’ के समक्ष अपने निर्णय को स्वीकृति के लिए पेश करता है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ‘ईश्वर 2’ एक अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली ईश्वर है। यह निष्कर्ष ‘ईश्वर 1′ को ”ईश्वर 2’ के अधीन बनाता है। यदि हम इस परिदृश्य की सावधानीपूर्वक जांच करें, तो हम यह पाएंगे कि ‘ईश्वर 1’ ‘ईश्वर 2’ के बराबर नहीं है और इसलिए ‘ईश्वर 1’ सही अर्थों में ‘ईश्वर’ नहीं हो सकता है।
यदि हम इस परिदृश्य को कई देवताओं पर लागू करते हैं, तो हम पाएंगे कि सभी देवता सिर्फ एक सर्वशक्तिशाली परमेश्वर के अधीन हैं। इसलिए “तथाकथित देवता” वास्तव में ईश्वर नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे ख़ुद भी उस एक सच्चे सर्वोच्च परमेश्वर की इच्छा के अधीन होते हैं।
कुरान में ईश्वर कहते हैं:
स्वर्ग और पृथ्वी में जो कुछ भी है, हर कोई दयावान परमेश्वर के सामने पूरी तरह से एक दास के रूप में समर्पित होकर आएगा।
कुरान अध्याय 19 की छंद 93
निष्कर्ष
इस ब्रह्मांड के सदृढ़ अस्तित्व जिसमें हम एक पूर्ण व्यवस्था का अवलोकन करते हैं, वह एक निर्विवाद और अकाट्य प्रमाण है जो इस बात की ओर संकेत देता है कि इस श्रृष्टि में केवल एक ही सर्वोच्च ईश्वर है, जो श्रृष्टि के सभी मामलों का प्रबंधन और विनियमन कर रहा है।
कुरान में ईश्वर कहते हैं:
तुम्हारा परमेश्वर केवल एक ही परमेश्वर है। उसके अलावा कोई भी पूजा, अधीनता और श्रद्धा के योग्य नहीं है – वह सर्वोच्च ईश्वर सबसे बड़ा और असीम दयालु है।
कुरान अध्याय 2 की छंद 163