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    क्या कुरान में पति को अपनी पत्नी को पीटने की अनुमति दी गई है?

    पैग़म्बर मुहम्मद ने कहा: “ ईश्वर कि महिला सेवकों को मत मारो”, कुरान जिस विवाह की बात करता है उसमें पति-पत्नी एक दुसरे से शांति और सुख प्राप्त करते हैं, जो बिना शर्त प्यार एवं दया पर आधारित होता है, तो यहाँ कुरान में घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने की बात कहाँ से आ जाती है?

    कुरान में अध्याय 4 के  श्लोक 34 में कहा गया है:

    पुरुष महिलाओं के रक्षक और रखवाले हैं ऐसा इसलिए क्योंकि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर श्रेष्ठता दिया है, और क्योंकि वे अपनी संपत्ति में से खर्च करते हैं। इस प्रकार धर्मी स्त्रियाँ वह हैं जो आज्ञाकारी हैं और अपने पति की अनुपस्थिति में अल्लाह के संरक्षण में उनके अधिकारों की रक्षा करती हैं। अगर तुम्हें अपनी पत्नी से बेवफ़ाई का डर हो तो, उन्हें बेहतरीन तरीके से समझाओ, अगर बात न बने तो बिस्तर पर जाते समय उन्हें नज़रअंदाज़ करो, अगर वो तब भी न मानें तो, उन्हें हल्के से मारो। पर यदि वे तुम्हारी बात मान लेती हैं तो, उन्हें नुकसान पहुंचाने के तरीके न तलाशो। निःसंदेह, परमेश्वर सर्वोच्च और महान है।

    कुरान : अध्याय 4 का श्लोक 34

    आलोचना

    ऊपर की आयत का हवाला देते हुए, कुरान के कई आलोचकों का आरोप है कि कुरान घरेलू हिंसा को बढ़ावा देता है क्योंकि इसमें पति को अपनी पत्नी को पीटने की अनुमति दी गई है।

    इस आलोचना को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में 2001 और 2018 के बीच घरेलू हिंसा में 53% की वृद्धि हुई है।

    सन्दर्भ: https://indianexpress.com/article/cities/pune/domestic-violence-cases-in-india-increased-53-between-2001-and-2018-study-7893930/

    क्या सच में कुरान घरेलू हिंसा की इजाजत देता है? चलिए पता करते हैं।

    खंडन

    1. यह एक लंबा लेख होगा क्यूंकि इस गंभीर मुद्दे को कई अलग अलग नज़रिए से समझने की ज़रुरत होगी।
    2. यदि आप श्लोक में प्रयोग किए गए शब्दों का भाषाई विश्लेषण में रुचि रखते हैं, तो कृपया लेख के अंत में “अतिरिक्त जानकारी” का अनुभाग देखें।

    कुरान को समझने का सही तरीका

    जब आप कोई भी ग्रंथ पढ़ते हैं, चाहे वह कुरान, बाइबिल या भगवद गीता हो, यह जानना बहुत महत्वपूर्ण होता है कि शास्त्र में समग्र रूप से क्या कहा गया है, इस बात को समझने का सही तरीका क्या है और उसे कैसे पता करें। सही तरीक़े को जाने बिना धर्मग्रंथों को सतही तौर पे पढ़ने से हम अक्सर गलत निष्कर्ष निकाल बैठते हैं।

    जहाँ तक क़ुरान के क़रीब आने का सवाल है, इसे पढ़ने के दौरान हमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:

    1. इस विषय पर कुरान में समग्र रूप से क्या बातें कही गई है?
    2. पैगंबर मुहम्मद ने इन आयतों को किस तरह से समझा, समझाया और कैसे अपने जीवन में इसका अनुकरण किया?
    3. श्लोक का प्रसंग क्या था?

    आइए अब आयत में उठाए गए प्रश्न को समझने के लिए उपरोक्त पद्धति को लागू करते हैं।

    समग्र रूप से कुरान इस विषय के बारे में क्या कहता है?

    चूंकि मामला पति और पत्नी के बारे में है, इसलिए यह समझना जरूरी है कि कुरान शादी को कैसे देखता है।

    कुरान के अनुसार शादी/विवाह का मामला

    कुरान में ईश्वर कहते हैं:

    और उसकी निशानियों में से एक निशानी यह है कि उसने (परमेश्वर ने) तुम्हारे लिए, तुम्हारी ही तरह के साथी बनाए हैं, ताकि तुम उनमें शांति और आनंद पा सको और उसने तुम्हारे बीच बिना शर्त प्रेम और दया को स्थापित किया है। निश्चित तौर पर इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो गहराई से सोच विचार करते हैं।

    कुरान अध्याय 30: आयत 21

    उपरोक्त आयत से, हमें यह बात समझ आती हैं कि निश्चित तौर पे विवाह के माध्यम से पति-पत्नी को एक-दूसरे से शांति और आनंद मिलना चाहिए। यहाँ यह भी बताया जा रहा हैं कि पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ बिना शर्त प्यार और दया साझा करनी चाहिए।

    नोट: इस आयत में, “प्रेम” के लिए अरबी के शब्द ‘मवद्दा’ का प्रयोग किया गया है। अरबी में हमारे पास प्रेम को संदर्भित करने के लिए कुछ और भी शब्द हैं। उदाहरण: इश्क, हब्ब, शगफा आदि। शब्द “मवादा” एक विशेष प्रकार के प्रेम को दर्शाता है जो बिना किसी स्वार्थ या दूसरे व्यक्ति से बिना किसी अपेक्षा के दिखाया जाता है। ईश्वर के सुंदर नाम और गुणों में से एक गुण “अल-वदुद” भी है जो “मवादा” शब्द से निकला गया है जिसका अर्थ है “वह जो हमें बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षाओं के प्यार करता है।”

    कुरान जिस विवाह की बात करता है उसमें पति-पत्नी एक दुसरे से शांति और सुख प्राप्त करते हैं और जो बिना शर्त प्यार एवं दया पर आधारित होता है, तो यहाँ कुरान में घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने की बात कहाँ से आ जाती है?

    एक पति जो कुरान के मार्गदर्शन का पालन करते हुए, अपनी पत्नी को बिना शर्त प्यार करता हो, वह उसके साथ गाली-गलोज या मारपीट कैसे कर सकता है?

    कुरान के उसी अध्याय में, ईश्वर पतियों को सलाह देते हैं:

    अपनी पत्नियों के साथ अच्छे तरीके से रहें। यदि आप उन्हें किसी भी तरह से नापसंद करते हैं, तो हो सकता है कि आप उस चीज़ को नापसंद करते हैं जिसमें अल्लाह ने आपके लिए कई सौभाग्‍य रखा है।

    कुरान अध्याय 4: श्लोक 19

    क्या यह तर्क सही है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर, जो एक पति को अपनी पत्नी के साथ अच्छे तरीके से रहने की आज्ञा देता है, वही ईश्वर उन्हें घरेलू हिंसा में भी लिप्त होने की आज्ञा देगा? आपका जवाब बिलकुल “नही” होगा!

    पत्नियों को मारने-पीटने के बारे में पैगंबर मुहम्मद ने क्या कहा?

    पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

    ईश्वर की महिला सेवकों को मत मारो।

    हदीस: सुनन इब्न माजा 1985

    यह एक स्पष्ट आदेश है कि महिलाओं के साथ मार-पीट नहीं की जानी चाहिए। आइए पैगंबर के कुछ अन्य कथनों को भी देखें जो यह स्पष्ट करते हैं कि इस्लाम में घरेलू हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है।

    पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

    बहुत सी औरतें अपने पति की शिकायत लेकर मुहम्मद के घरवालों के पास पहुँच रहीं हैं कि उनके पति उन्हें मारते पीटते हैं। पत्नियों के साथ मार पीट करने वाले यह लोग तुम में से अच्छे लोग नहीं हैं।

    हदीस: सुनन अबू दाऊद 2146

    आप में से कोई, कैसे जानवरों की तरह, अपनी पत्नी को मारता है और फिर उसे गले भी लगाता है?

    हदीस: सही बुखारी 5695

    पैगंबर ने महिलाओं को भी ऐसे परुषों से सावधान और सतर्क रहने को कहा जिनसे संभावना हो की वो शादी के बाद पत्नियों के साथ मार पीट कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, पैगंबर ने फातिमा बिंत कैस नाम की एक महिला को सलाह दी कि वह ऐसे पुरुष से शादी न करें जो महिलाओं के साथ मार-पीट के लिए जाना जाता हो। पैगंबर ने कहा:

    अबू अल-जाम, जो अक्सर महिलाओं को मारता है। उसे बेहतर है कि उस्माह से शादी करनी चाहिए।

    हदीस : सहीह मुस्लिम 1480

    घरेलू हिंसा पर पैगंबर के कथनों की सूची इतनी लंबी है कि इस लेख में सबको उल्लेख कर पाना मुश्किल है। हम इस खंड को पैगंबर की पत्नी आयशा के एक उद्धरण के साथ समाप्त करना चाहेंगे। उन्होंने कहा:

    ुद्ध के मैदान को छोड़कर, पैगंबर ने कभी किसी को अपने हाथ से नहीं मारा, न तो किसी नौकर को और न ही किसी महिला को।

    हदीस : सहीह मुस्लिम 2328

    आयत 4:34 का संदर्भ क्या है?

    हम में से सभी एक सुखी विवाह की कामना करते हैं, पर दुर्भाग्य से कुछ शादियां आदर्श विवाह के मानकों से कोसों दूर रह जाती है। कुरान के श्लोक 34 और 35 को ध्यानपूर्वक पढ़ने से, हम अनुमान लगा सकते हैं कि इन आयतों में गंभीर वैवाहिक कलह से निपटने के लिए मार्गदर्शन प्रदान की गई हैं।

    श्लोक 34 पति को मार्गदर्शन प्रदान करता है कि ऐसी स्तिथि में उसे क्या करना चाहिए जब उसे यह संदेह हो या डर हो कि उसकी पत्नी “नुशुज” कर रही है। नुशुज का मतलब “बेवफाई” या “विश्वासघात” होता है, यानी जब पत्नी पति के अलावा किसी अन्य पुरुष की इच्छा रखती है। (इस शब्द का भाषाई विश्लेषण अतिरिक्त जानकारी अनुभाग में दिया गया है।)

    जब पति को शक हो कि उसकी पत्नी बेवफा है…

    याद रखें, “विश्वासघात” ऐसी चीज़ है जो विवाह के नींव को हिला देता है और विवाहिक जीवन में विद्रोह का सबसे बड़ा कारण बनता है। जब पति को संदेह होता है कि उसकी पत्नी विश्वासघाती है, तो ऐसी गंभीर स्तिथि से निपटने के लिए कुरान में ईश्वर निर्देश देते है कि उसे चाहिए:

    1. सबसे पहले उसे बेहतरीन तरीके से समझाने की कोशिश करो, इस तरह से जो उसके दिल को छू जाए।

    यदि यह तरीका विफल रहता है, तो उसे चाहिए:

    2. बिस्तर पर जाते समय उन्हें नज़रअंदाज़ करो या अपने बिस्तर अलग कर लो (यानी उसके साथ शारीरिक संबंध न बनाओ)

    यदि यह तरीका भी विफल रहता है, तो उसे चाहिए:

    3. वाज्रिबुहुन्ना (इस शब्द का सही अर्थ नीचे समझाया गया है)।

    पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

    मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि तुम स्त्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करो, क्योंकि वे तुम्हारी सहायक हैं। वास्तव में, आपको उनके साथ बुरा व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है, सिवाय इसके कि जब वे खुले तौर पर अनैतिकता और बेशर्मी पे उतर आए। यदि वे ऐसा करती हैं, तो आप अपने बिस्तर अलग कर लें या फिर बिना किसी दर्द या निशान के, “वाज्रिबुहुन्ना” कर सकते हैं, लेकिन अगर वे आपकी बात मानती हैं तो आप उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकते हैं।

    हदीस: सुनन अल-तिर्मिधि 1163

    पैगंबर के इस कथन में भी पत्नी की ओर से बेवफाई की बात की गई है और पति को भी कुरान में वर्णित आयत के तर्ज पर ही सलाह दी गई है, लेकिन “वाज्रिबुहुन्ना” के बारे में बोलते समय ये स्पष्ट किया गया है कि “बिना किसी दर्द या निशान के” [ضرْبًا غَيْرَ مَبَرِّحٍ] ।

    “वाज्रिबुहुन्ना” का क्या अर्थ है?

    आयत में प्रयुक्त अरबी शब्द वाज्रिबुहुन्ना का प्रयोग किया गया है जिसका अनुवाद “उन्हें मारो” के रूप में किया जाता है, जो मूल शब्द ‘ज़रबा’ से आया है। अरबी शब्द ‘ज़रबा’ के कई अर्थ हैं। जब किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं, तो अक्सर हम उस अर्थ को लेते हैं जो संदर्भ के अनुकूल हो। यह सिद्धांत किसी भी भाषा के लिए सही होता है। आइए हम अंग्रेजी के शब्द ‘बीट’ पर विचार करें। इसके कई अर्थ होते हैं। सामान्य अर्थ है: बार-बार प्रहार करना ताकि दर्द हो।

    हालाँकि, ‘बीट’ शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए: यदि आप पढ़ते हैं “Roger Federer beat Nadal in the Wimbledon final” हिन्दी अनुवाद “रोजर फेडरर ने नडाल को विंबलडन फाइनल में हराया”, तो आप यहाँ ‘बीट’ का मतलब क्या समझेंगे? क्या आप समझेंगे कि फेडरर ने दर्द देने के लिए नडाल को मारा या आप समझेंगे कि फेडरर ने फाइनल गेम में नडाल को हराया था? जाहिर है, आप दुसरे वाक्य के साथ जाएंगे। यह एक ही शब्द ‘बीट’ है लेकिन संदर्भ अलग होने के कारण यह बिल्कुल अलग अर्थ देता है। इसे ध्यान में रखते हुए, आइए हम आयत में प्रयोग की गई ‘ज़रबा’ शब्द के अर्थ का विश्लेषण करें।

    ‘धारबा’ शब्द के कुछ अर्थ हैं; पीटना, यात्रा करना, थपकी देना, सेट करना, स्पष्ट बयान या उद्घोषणा आदि करना। उदाहरण के लिए: यदि हम अध्याय 66 के श्लोक 10 और 11 पढ़ते हैं, तो अरबी में लिखा है “जराबा अल्लाहु मसलन…”। जिसका अनुवाद “ईश्वर एक उदाहरण प्रस्तुत करता है” के रूप में किया जाता है। यहाँ संदर्भ के आधार पर, आयत में ‘ज़रबा’ शब्द का सही अनुवाद “आगे रखता है या प्रस्तुत करता है” के रूप में किया गया है।

    आयत (4:34) में ‘जरबा’ शब्द का क्या अर्थ है?

    आयत में प्रयोग किए गए ‘ज़रबा’ शब्द के उचित अर्थ पर हम तभी पहुँच सकते हैं जब हम विवाह पर कुरान के दृष्टिकोण और ऊपर वर्णित पैगंबर की शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए विश्लेष्ण करते हैं।

    जब हम समग्र रूप से कुरान की अन्य आयतों और पैगंबर की बातों पर विचार करते हैं, तो ‘ज़रबा’ शब्द का सही अर्थ यह है कि “धीरे से थपकी दे या हलके-से मारे, ताकि पत्नी को यह साफ़ तौर पे एहसास दिला दिया जाए कि उनके रिश्ते में अब आखिरी तिनके के बराबर गुंजाईश है। (इसके लिए भाषाई विश्लेषण अतिरिक्त जानकारी अनुभाग में दिया गया है।)

    पैगंबर के महान साथी, अब्दुल्ला इब्न अब्बास, जब उन्होंने “वाज्रिबुहुन्ना” शब्द की व्याख्या की, तो उन्होंने कहा:

    टूथ-क्लीनिंग स्टिक (मिस्वाक) ’या उसके जैसा किसी चीज़ से थपकी देना (بِالسِّوَاكِ وَنَحْوِهِ)

    तफ़सीर तबरी
    Miswak - Tooth Cleaning Stick - Curious Hats
    मिस्वाक – टूथ क्लीनिंग स्टिक

    जैसा कि कोई भी समझ सकता है कि, “दांत-सफाई की छड़ी” के साथ पत्नी को थपकी देने से न तो दर्द होगा और न ही पैगंबर के निर्देश के अनुसार कोई निशान छोड़ेगा। कोई भी निष्पक्ष पाठक देख सकता है कि कुरान की यह आयत किसी भी तरह से पतियों को घरेलू हिंसा में लिप्त होने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रही है।

    आयत 4:34 घरेलू हिंसा का समाधान है

    जिस श्लोक की आलोचना की गई है वह वास्तव में घरेलू हिंसा का समाधान है। आइए देखें कैसे।

    घरेलू हिंसा तब होती है जब पति अत्यधिक गुस्से में होता है और आवेगी होता है। जब एक पति को अपनी पत्नी पर बेवफाई का संदेह होता है, तो पति को कितना गुस्सा आएगा, यह अकल्पनीय है। भावनात्मक रूप से इस अस्थिर स्थिति के दौरान भी, ईश्वर पतियों को अपने क्रोध को नियंत्रित करते हुए उसे तीन चरणों की प्रक्रिया के पालन करने का आदेश देते हैं, सबसे पहले उसे बेहतरीन तरीके से समझाने की कोशिश करो जो उसके दिल पे असर करे, इससे अगर वो ना समझे तो फिर उसे बिस्तर पर नज़रअंदाज़ कर कर के देखो और अंत में यदि ये दो कदम विफल हो जाते हैं, तो उसे हलके-से मारे जो उसके लिए साफ़ तौर पे एक घोषणा हो कि अगर वह इसी तरह जारी रही तो यह उनकी शादी का अंत होगा। देखा जाए तो यह मार्गदर्शन कितना सुंदर है! इस आयत पर यह आरोप कैसे लगाया जा सकता है कि आयत पति को अपनी पत्नि पर घरेलु हिंसा लिए प्रोत्साहित करती है?

    जब कुरान ने पतियों को अपनी पत्नियों की बेवफ़ाई (जो की विद्रोह का सबसे बड़ा कारण है) के लिए भी, उसे पीटने की अनुमति नहीं दी, तो अन्य अवज्ञा कार्यों के लिए पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को पीटने की अनुमति देने का सवाल कहां है?

    “मुसलमान” द्वारा की गई किसी भी क्रूरता, पारिवारिक हिंसा या दुर्व्यवहार को कुरान और पैगंबर की बातों में कोई समर्थन नहीं मिलता है। इस तरह की ज्यादतियों और उल्लंघनों के लिए स्वयं व्यक्ति को दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति इस्लामी शिक्षाओं के लिए केवल जुबानी खर्च कर रहे होते हैं जबकि वास्तव में वह कुरान व पैगंबर (शांति उस पर हो) के सच्चे उदाहरण का पालन करने में विफल रहे हैं।

    पति की बेवफाई का क्या?

    कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि क्या कुरान में बेवफाई की बात सिर्फ़ पत्नियों के लिए की गई है या इसमें पति की बेवफाई के बारे में भी कुछ बोला गया है? इसका जवाब है हाँ! कुरान में ईश्वर कहते हैं:

    अगर पत्नी को अपने पति से विश्वासघात (नुशुजान) या उपेक्षा का डर है, तो दोनों में से किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जाएगा यदि वो दोनों आपस में शांतिपूर्ण समझौता कर लें, जो शांति के लिए सबसे अच्छा है।

    कुरान अध्याय 4: श्लोक 128

    आयत 34 में प्रयुक्त वही शब्द “नुशुजन” का प्रोयोग यहाँ भी हुआ है। “नुशुज़” शब्द का प्रयोग पूरे कुरान में केवल दो बार किया गया है। एक बार पत्नियों के अनैतिक व्यवहार के लिए और एक बार पतियों के अनैतिक व्यवहार के लिए प्रयोग हुआ है।

    कुरान में इसी अध्याय के एक और श्लोक में ईश्वर कहते हैं:

    लेकिन अगर पति और पत्नी अलग होना पसंद करते हैं, तो परमेश्वर उन दोनों को अपनी भरपूर आशीष प्रदान करेगा।

    कुरान अध्याय 4: श्लोक 130

    श्लोक 128 में, परमेश्वर पति और पत्नी के बीच एक शांतिपूर्ण समझौते की सिफारिश करते है, और यदि यह कदम विफ़ल हो जाता है, तो इस स्तिथि में ईश्वर श्लोक 130 में, उनके बीच अलगाव की अनुमति देते है।

    कुरान एक इंकलाबी पुस्तक है

    अरबी भाषा में कुछ शब्द विशेष रूप से महिलाओं के लिए उपयोग किए जाते हैं। उदाहरण के लिए: “हैज” महिलाओं के मासिक धर्म को संदर्भित करता है। “हामिल” शब्द गर्भवती महिला को संदर्भित करता है। ये शब्द विशेष रूप से महिलाओं के लिए हैं क्योंकि पुरुष के साथ मासिक धर्म या गर्भ जैसा मामला नहीं हो सकता है।

    पुरुष-केंद्रित पूर्व-इस्लामिक अरब समाज में, “नुशुज़” शब्द का इस्तेमाल केवल महिलाओं के लिए उसकी बेवफाई को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। ऐसा इसलिए है क्योंकि उस समय अगर कोई महिला बेवफा हो जाए तो यह उनके लिए एक बड़ा अपराध था । जबकि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को धोखा दे तो वह उनके लिए कोई अपराध नहीं माना जाता था और ऐसे पुरुष उनके समाज में पूरी तरह से स्वीकार्य थे।

    अरबी भाषा में कुरान ने पहली बार “नुशुज” शब्द का इस्तेमाल एक पुरुष की बेवफाई को भी संदर्भित करने के लिए किया और इस तरह एक मजबूत संदेश दिया गया कि विवाह के बंधन में पति और पत्नी दोनों से निष्ठा और ईमानदारी की उम्मीद की जाती है और बेवफ़ाई की संभावना भी दोनों के ओर से हो सकती है।

    घरेलू हिंसा बर्दाश्त न करें

    जैसा कि हम देख सकते हैं, कुरान और पैगंबर की बातें घरेलू हिंसा की कड़ी निंदा करती हैं। एक पत्नी को किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा को सहन करने की आवश्यकता नहीं है और न ही करनी चाहिए। वास्तव में, घरेलू हिंसा तलाक लेने का एक वैध कारण है। पैगंबर ने घरेलू हिंसा को बहुत गंभीरता से लिया था, इतना ही नहीं, वह किसी महिला को अपने पति से तलाक लेने के फैसले से सहमत भी थे।

    हबीबा बिन्त सहल, सबित इब्न क़ैस की पत्नी थीं और वह पैगंबर की पड़ोसी थीं। एक बार सबित ने उसे पीटा था। तो वह पैगंबर के दरवाजे पर दिखाई दी और उसने कहा: “सबित और मैं अब शादी के रिश्ते में और नहीं रह सकते।” पैगंबर ने सबित से कहा:

    आपका इनके पास जो भी बकाया है उसे ले लो और इन्हें अपने रास्ते जाने दो।

    हदीस: सुनन अल द्रिमी 2200

    पत्नि को गाली देने वाले पति के लिए चेतावनी

    हम उन पुरुषों को याद दिलाना चाहते हैं, जो अपनी पत्नियों को भावनात्मक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं, कि उन्हें अपने इस घृणित कार्यों के लिए न्याय के दिन ईश्वर को जवाब देना होगा।

    पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

    क़यामत के दिन लोगों के लिए निश्चित रूप से न्याय के अधिकार बहाल किए जाएंगे, यहां तक ​​कि बिना सींग वाली भेड़ें भी सींग वाली भेड़ों पर न्याय का दावा करेंगी।

    हदीस : सहीह मुस्लिम 2582

    जब जानवरों के बीच भी न्याय स्थापित हो जाएगा जिन्हें अपने कार्यों पर कोई विकल्प नहीं दिया गया है, तो कल्पना कीजिए कि उन पुरुषों की क्या स्थिति होगी जो अपनी पत्नियों को भावनात्मक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार करने का विकल्प चुनते हैं।

    यदि आप सोच रहे हैं कि “क्या मृत्यु के बाद जीवन संभव है?”, अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

    अपनी पत्नियों को पीटने वाले पुरुष सबसे बुरे होते हैं

    पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

    तुम में से सबसे अच्छा वह है जो अपनी पत्नी के लिए सबसे अच्छा है।

    हदीस : सुनन इब्न माजाह 1977

    सबसे अच्छे पुरुष वे हैं जो अपनी पत्नियों के लिए सबसे अच्छे हैं, तो सबसे बुरे पुरुष वे हैं जो अपनी पत्नियों के लिए सबसे बुरे हैं। जो पुरुष अपनी पत्नियों को भावनात्मक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं, वैसे लोग पुरुषों में सबसे बुरे हैं। उन्हें अपने व्यवहार में सुधार के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श लेना चाहिए।

    पुरुष! ये न सोचो कि तुम महान हो

    परमेश्वर अध्याय 4 के आयत 34 को यह कहकर समाप्त करते है:

    … निःसंदेह, परमेश्वर सर्वोच्च और महान है।

    कुरान अध्याय 4: श्लोक 34

    जो पुरुष अपनी पत्नियों को गाली देते हैं, वे सोचते हैं कि वे एक महिलाओं से श्रेष्ठ हैं और महान हैं। ईश्वर उन्हें याद दिलाते हैं कि यह सिर्फ़ एक ईश्वर है जो सबसे श्रेष्ठ है और सबसे महान है। और न्याय के दिन, उसी ईश्वर के सामने, जो सर्वोच्च और सबसे महान है, उन्हें अपनी पत्नियों के खिलाफ किए गए घृणित कार्यों का जवाब देने के लिए खड़ा होना पड़ेगा। तो पुरुष को चाहिए कि वो ठीक से व्यवहार करना सीखें!

    अतिरिक्त जानकारी

    नुशुज क्या है?

    नुशुज “बेवफाई” या “विश्वासघात” को कहते है, यानी जब पत्नी पति के अलावा किसी अन्य पुरुष की इच्छा रखती है। कोई पूछ सकता है, हमने कैसे निष्कर्ष निकाला कि नुशुज “विश्वासघात” है? आइए इसके लिए एक हदीस को देखें जिसमें इसी “नुशुज़” शब्द का इस्तेमाल हुआ है।

    एक महिला पैगंबर के पास आई और शिकायत की:

    मैं ईश्वर की कसम खाती हूँ! मैंने उसके साथ कुछ भी गलत नहीं किया है, लेकिन वह नपुंसक है और मेरे लिए उतना ही बेकार है जितना कि यह, “अपने कपड़े का आंचल पकड़े और दिखाते हुए बोली

    अब्दुर रहमान (महिला के पति) ने कहा:

    मैं ईश्वर की कसम खाता हूँ, हे ईश्वर के पैगंबर! उसने झूठ बोला है! मैं बहुत मजबूत हूं और उसे संतुष्ट कर सकता हूं लेकिन वह बेवफा है और केवल रिफाह को (रिफाह दूसरे आदमी का नाम है) चाहती है।

    हदीस: सही बुखारी 5825

    इस हदीस में, जब पति ने अपनी पत्नी के बारे में बताया, तो उन्होंने “وَلَكِنَّهَا نَاشِزٌ تَرِيدَ رِفَاعَةَ” वाक्यांश का प्रयोग किया। यहाँ हम देख सकते हैं कि उसने अपनी पत्नी को “नाशिज़” कह कर संबोधित किया जो रिफाह नामक एक और आदमी की इच्छा रखती है। “नाशिज़” एक महिला है जो “नुशुज़” करती है।

    अब यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि “नुशुज़” शब्द का अर्थ “विश्वासघात” है और यह पत्नी की अवज्ञा के किसी अन्य सामान्य कार्य के बारे में नहीं है।

    क्या “जराबा” शब्द को “धीरे से मरना या थपकी लगाना” के रूप में समझा जा सकता है?

    अगर कोई यह सोचता है कि इस लेख में हमने जानबूझकर एक ऐसे अर्थ का चयन किया हैं जो हमारे लिए सुविधाजनक है, तो हम यह बताना चाहेंगे कि हदीस (पैगंबर की बात) में भी ‘ज़राबा’ शब्द का इस्तेमाल “धीरे से मरना या थपकी लगाना” के लिए किया गया है। आइए एक नजर डालते हैं उस हदीस पर।

    पैगंबर के साथी, अबू ज़र कहते हैं: मैंने पैगंबर से कहा, क्या आप मुझे राज्यपाल के रूप में नियुक्त नहीं करेंगे? उसने अपने हाथ से मेरे कंधे पर धीरे से थपथपाया और कहा: अबू ज़र, तुम कमजोर हो और अधिकार एक विश्वास है।

    हदीस : सहीह मुस्लिम 1825

    इस हदीस में ‘ज़राबा’ शब्द का ही प्रयोग किया गया है। “अपने हाथ से मेरे कंधे पर धीरे से थपथपाया” के लिए अरबी पाठ فَضَرَبَ بِيَدِهِ َلَى مَنْكِبِي है। इस वाक्यांश में, ‘जरबा’ शब्द को “धीरे से थपकी लगाया गया” के रूप में समझा जाता है क्योंकि यदि हम “बीट” यानि पिटना का अर्थ देते हैं, तो इस संदर्भ में इसका कोई मतलब नहीं होगा। तो, “धीरे से मरना या थपकी लगाना” ‘ज़रबा’ शब्द का एक सही अर्थ है।

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