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    पैगंबर मुहम्मद – एक व्यक्ति जो अरबों लोगों के दिलों पर राज करते हैं

    दुनिया में एक अरब से अधिक लोग उन्हें अपने जीवन से अधिक प्यार करते हैं और उन्हें अपना परम प्रेरणास्रोत एवं आदर्श मानते हैं। पैगंबर मुहम्मद कौन हैं? उन्होंने क्या सिखाया?

    पैगंबर कौन हैं ?

    ईश्वर ने सिर्फ हमें जीवन ही नहीं दिया बल्कि धरती पे हमें जीवन जीने के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन भी प्रदान किए । यदि आप एक कार के बारे में जानना चाहते है, तो उदाहरण के लिए आप एक कार का ही उपयोग करेंगे, न कि बाइक का। इसी तरह, ईश्वर ने समय समय पर कुछ पवित्र लोगों का चयन किया जिसके ज़रिए से अन्य मनुष्यों के सामने एक आदर्श व्यक्ति के उदाहरण को प्रस्तुत किया ताकि वो भी उनका अनुसरण कर एक बेहतरीन जीवन जीने के तरीके को सीख सकें। इन आदर्श व्यक्तियों को हम, ईश्वर द्वारा भेजे गए पैगंबर कहते है। पैगंबर केवल मनुष्य मात्र होते थे और उनमें कोई दिव्य शक्ति नही होता था। ईश्वर ने समय के हर काल में हर कौम के लिए कोई न कोई पैग़म्बर भेजे, कुछ पैगम्बर के नाम इस प्रकार हैं: जैसे इब्राहीम, दाऊद, मूसा और यीशु।

    पैगंबर मुहम्मद कौन थे?

    पैगंबरों की इस लंबी श्रृंखला में पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) अंतिम पैगंबर थे। वह आपके और मेरे सहित पूरी मानवजाति के लिए अंतिम समय तक पैग़म्बर बनाकर भेजे गये हैं।

    उनका प्रारंभिक जीवन

    पैगंबर मुहम्मद(उन पर शांति हो) का जन्म मक्का शहर में कुरैश नामक एक क़बीले में हुआ था, इस कबीले के लोगों की सामाजिक स्थिति काफ़ी बेहतर थी और ये लोग ही शहर की अर्थव्यवस्था एवं राजनीति को नियंत्रित करते थे। पैगंबर मुहम्मद(उन पर शांति हो) छह (6) साल की उम्र में अनाथ हो गये थे। मक्का में पैगंबर के उच्चतम चरित्र एवं ईमानदारी की काफी प्रशंसा होती थी, और उन्हें एक ऐसे वयक्ति के तौर पे जानते थे जो सभी लोगों के साथ अच्छे व्यवहार के साथ पेश आते थे। मक्का में अक्सर लोग उन्हें “अल-अमीन” (भरोसेमंद) कह कर पुकारते थे।

    पैगंबरी

    चालीस साल की उम्र तक, पैगंबर मुहम्मद(उन पर शांति हो), एक निरक्षर थे, इस वक्त तक वो एक राजनेता या एक उपदेशक या एक वक्ता के रूप में नहीं जाने जाते थे। इससे पहले उन्होंने कभी धर्म ,नैतिकता, कानून, राजनीति, अर्थशास्त्र या समाजशास्त्र के सिद्धांतों पर चर्चा भी नहीं की थी।

    40 साल की उम्र में, पैगंबर मुहम्मद अक्सर मक्का के पास हीरा नामक गुफा में हर दिन घंटों गुज़ारा करते थे, ईश्वर के बारे में ध्यान करते थे जिसे अरबी भाषा में अल्लाह (जैसे हिंदी में ईश्वर और कन्नड़ में देवारू) कहा जाता है, वहाँ वह समाज में मौजूद कुरीतियों और जुल्म एवं अन्याय के बारे में गहन चिंता करते थे और उसके समाधान के मार्ग को ढूँढने का प्रयास करते थे। एक दिन, पैगंबर मुहम्मद को जीब्रिल नामक देवदूत(फरिश्ता) के माध्यम से उनके लिए ईश्वर का पहला श्रुति (संदेश/ज्ञान) प्राप्त हुआ । फिर उन्हें अगले 23 वर्षों तक समय समय पर विभिन्न विषयों के लिए ईश्वर की श्रुति की प्राप्ति हुई, इन श्रुतियों में एक ईश्वर की उपासना, जीवन का उद्देश्य, पहले के पैग़म्बरों का जीवन, नैतिकता, आचार नीति और मृत्यु के बाद का जीवन का उल्लेख है। इन श्रुतियों के संग्रह को कुरान के रूप में जाना जाता है जो ईश्वर का शाब्दिक वचन है। पैगंबर के अपने शब्दों को अलग से एकत्र किया गया था जिन्हें हदीस कहा जाता है।

    संदेश

    पैगंबर मुहम्मद ने इस्लाम नामक एक नए धर्म की स्थापना नहीं की। इस्लाम एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ईश्वर के प्रति समर्पण और आज्ञाकारिता। उनसे पहले आने वाले सभी पैगंबरों ने भी यही शिक्षा दी थी। पैगंबर मुहम्मद ने पहले आए सभी पैगंबरों द्वारा सिखाए गए ईश्वर के समर्पण और आज्ञाकारिता के एक ही संदेश को पुनर्जीवित किया। पैगंबर मुहम्मद ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण चीजों को सिखाया। वे हैं:

    • हमारे जीवन का उद्देश्य केवल एक ईश्वर की पूजा करना और उनकी आज्ञा का पालन करना है। (एक ईश्वर की पूजा करें, मूर्तियों, छवियों, सूर्य, तारे, ग्रहों आदि जैसी ईश्वर की रचनाओं की पूजा ना करें। किसी को या किसी भी चीज़ को ईश्वर के बराबरी में ना रखें । ईश्वर के अस्तित्व से इनकार ना करें)।
    • ईश्वर केवल एक ही है। ईश्वर के माता-पिता, बच्चे और पति-पत्नी नहीं हैं और उसके बराबर कोई नहीं है।
    • हम इस दुनिया में जो कुछ भी करते हैं उसके लिए मृत्यु के बाद के जीवन में हम ईश्वर के प्रति उत्तरदायी हैं।
    • ईश्वर जाति, त्वचा के रंग, नस्ल या वंश के आधार पर लोगों को अलग नहीं करता है और ईश्वर के नज़दीक सभी मनुष्य समान हैं।

    पैगंबर का उपदेश धन, शक्ति, राजपद या महिलाओं के लिए नहीं था

    उनके संदेश को रोकने लिए मक्का के वर्चस्व रखने वाले लोगों ने अथक प्रयास किया फिर भी जब बात नहीं बनी तो उन्होंने पैग़म्बर मुहम्मद को अनेकों प्रस्ताव की पेशकश की, जैसे उन्हें अपने राजा के रूप में स्वीकार करना, उनकी पसंद की महिला से शादी करवा देना या भूमि के सभी धन को उनके पैरों पर रख देना आदि । पैगंबर ने उनके आकर्षक प्रस्तावों को ठुकरा दिया और इसके बदले अपमान, सामाजिक बहिष्कार और यहां तक कि शारीरिक हमले को सहना पसंद किया । इसके बावजूद भी ईश्वर के संदेश को लोगों तक पहुँचाना जारी रखा। इससे साफ साबित होता है कि पैगंबर ने सांसारिक लाभों के लिए ईश्वर के संदेश का प्रचार नहीं किया था।

    राज्य के शासक के रूप में पैगंबर

    13 वर्षों तक मक्का के लोगों द्वारा उत्पीड़न को धैर्यपूर्वक सहन करने के बाद, पैगंबर मुहम्मद मदीना नामक एक शहर में चले गए, वहाँ के लोगों ने न केवल उन्हें पैगंबर के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उन्हें राज्य का शासक भी बनाया। जब तक उनकी मृत्यु हुई, एक ऐसा क्षेत्र जो भारत जितना बड़ा था, उनके अधिकार में था। आध्यात्मिक नेता और एक राज्य के शासक होने के बावजूद, पैगंबर ने अपने पूरे जीवन में शिक्षात्मक विनम्रता और उल्लेखनीय सादगी का प्रदर्शन किया।

    पैगंबर का सरल, विनम्र जीवन

    पैगंबर ने एक बहुत ही छोटे से घर में गरीबी में अपना जीवन बिताया, उन्हें एवं उनके परिवार को प्रायः कई दिनों भोजन के बिना भी गुज़ारा करना पड़ता था। यहाँ तक की किसी मौके पर ये भी लिखा गया है की पारिवारिक जरुरत को पूरा करने के लिए उन्होंने एक यहूदी से तीस पैमाने जौ के अनाज उधार लिए थें , जो उनके राज्य का एक नागरिक था और ऋण की सुरक्षा के रूप में अपने कवच को गिरवी रखा और वह उस कवच को वापस लिए बिना इस दुनिया से चले गए। कई मौकों पे उन्होंने अपने अनुयायियों को अपने सम्मान के लिए खड़े होने से रोक दिया। उनके पास कोई अंगरक्षक नहीं होता था और न ही उनके घर की रक्षा के लिए किसी सैनिक की तैनाती की जाती थी । उन्होंने लोगों को साफ़ साफ़ आदेश दिया कि वे उनकी अत्यधिक प्रशंसा न करें और कहा

    जैसे यीशु की अत्यधिक प्रशंसा की जाती है वैसे मेरी प्रशंसा ना करो, लेकिन मुझे ईश्वर का सेवक और उसका पैगंबर कहो

    वह इतना विनम्र थे कि वह अपने साथियों में इस तरह घुलमिल जाते थे की कोई पहली बार उनसे मिले,तो उसे पूछना पड़ता था कि “आप में से मुहम्मद कौन है?”

    पैगंबर का उपदेश और समानता का अभ्यास

    पैगंबर मुहम्मद ने घोषणा की

    सभी मानवजाति आदम और हव्वा की संतान हैं। एक अरब व्यक्ति की गैर-अरब पर कोई श्रेष्ठता नहीं है, और न ही एक गैर-अरब की अरब पर कोई श्रेष्ठता है; सफेद व्यक्ति की काले पर कोई श्रेष्ठता नहीं है, न ही एक काले की सफेद पर कोई श्रेष्ठता है; किसी को किसी के ऊपर कोई श्रेष्ठता नहीं है सिवाय इसके कि कोई पवित्रता और अच्छे कार्य करने में श्रेष्ठ हो

    पैगंबर ने बिलाल नामक व्यक्ति (जो एक पूर्व काले दास थे) को दिन में पांच बार की प्रार्थनाओं के लिए अज़ान देने के कार्य के लिए नियुक्त किया, जो इस्लाम में सबसे सम्मानित कर्तव्यों में से एक है।

    पैगंबर और सामाजिक सुधार

    ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए, उन्होंने लोगों के अंदर ईश्वर के प्रति ध्यान केंद्रित करने की चेतना जगाई और लोगों को यह एहसास दिला कर कई सामाजिक सुधार किए कि वे मृत्यु के बाद के जीवन में अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी हैं । उन्होंने मुफ़्त व्यापार और नैतिक निवेश को प्रोत्साहित किया किन्तु साथ साथ श्रमिकों के अधिकारों को भी सुरक्षित किया और ब्याज के लेन-देन को मना कर दिया। उन्होंने शराब, एवं अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन, वेश्यावृत्ति और अपराध को प्रतिबंधित करके स्वस्थ जीवन को बढ़ावा दिया। उन्होंने घरेलू हिंसा की कड़ी निंदा की और महिलाओं को अपने मन की बात कहने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने जानवरों, पेड़ों और पर्यावरण की रक्षा के लिए कानून स्थापित किए। उन्होंने लोगों को लाभकारी ज्ञान की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसके परिणाम स्वरूप मुसलमानों ने कभी भी विज्ञान और धर्म के बीच संघर्ष का अनुभव नहीं किया। इसी प्रेरणा ने मुसलमानों को कई शताब्दियों तक शिक्षा एवं शोध के कई क्षेत्रों में दुनिया का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया।

    गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार

    पैगंबर ने सिखाया कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, उनके साथ उचित और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। एक बार पैगंबर के सामने से एक शव यात्रा गुजरी और वह खड़े हो गए। जब उन्हें बताया गया कि यह एक यहूदी का ताबूत है, तो उन्होंने कहा, “क्या वह एक इंसान नहीं है?”

    “तीस पैमाने जौ के अनाज का उधार की घटना” एक मौक़े पे पैगंबर ने अपने परिवारिक ज़रुरत को पूरा करने के लिए अपने राज्य के एक यहूदी नागरिक से अपने हथियारबंदी(कवच) को गिरवी रख कर तीस पैमाने जौ की अनाज उधार लिए थे। ये घटना दिखाती है कि उनके राज्य में गैर-मुस्लिमों को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई थी, यहाँ तक कि उन्हें राज्य के शासक को भी पर्याप्त शर्त/गिरवी के बिना उधार देने के लिए कोई दबाव नहीं था। हम देखते हैं कि पैगंबर ने खैबर की भूमि को यहूदियों को काम करने और उसपर खेती करने के लिए दिया था। एक शासक होने के नाते, पैगंबर मुसलमानों को भूमि वितरित कर सकते थे या वह मुसलमानों को वहां बसा सकते थे किन्तु इसके बजाय, उन्होंने इस तरह से योजना बनाई और उसका निष्पादन भी किया जिससे यहूदियों को लाभ हो। इन घटनाओं से यह भी साबित होता है कि गैर-मुस्लिमों का जबरन इस्लाम में धर्मांतरण कभी नहीं हुआ।

    महिलाओं के प्रति व्यवहार

    पैगंबर ने महिलाओं के अधिकारों की स्थापना की और महिलाओं के सशक्तिकरण को प्रोत्साहित किया। उन्होंने एक ऐसे समाज को बदल दिया जो महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने और बच्चियों की हत्या करने में गर्व महसूस करता था। उन्होंने घोषणा की कि महिलाओं को कमाने, अध्ययन करने, विरासत में हिस्सेदारी, अपने जीवन साथी को स्वेच्छा से चुनने, पुनर्विवाह, तलाक, अपनी निजी संपत्ति आदि का अधिकार है जो दुनिया के अन्य हिस्सों में कई शताब्दियों से अनसुनी सी बात थी। उन्होंने इस तरह की शिक्षाओं द्वारा महिलाओं की स्थिति को काफी ऊंचा किया।

    सबसे अच्छे लोग वे हैं जो अपनी पत्नियों के लिए सबसे अच्छे हैं

    हमारे प्यार और सम्मान के लिए सबसे योग्य मानव हमारी मां है

    मां के पैरों के नीचे स्वर्ग स्थित है

    (मुस्लिम महिलाएं हिजाब क्यों पहनती हैं? यहां पढ़ें)

    युद्ध – क्यों?

    कई लोग ये सवाल करते है की पैग़म्बर ने अपने जीवन में युद्ध क्यों किया , इस बात को हम इस तरह समझ सकते है। जब किसी राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाता है तो नागरिकों की रक्षा करना शासक का कर्तव्य बन जाता है। उदाहरण : कारगिल युद्ध (भारत के सन्दर्भ में) जिसमे भारतीयों की रक्षा करना यहाँ के तत्कालीन सरकार का कर्तव्य था।

    पैगंबर द्वारा लड़े गए युद्ध एक ही प्रकृति के थे। युद्ध उत्पीड़न से लड़ने और अपने राज्य के नागरिकों की रक्षा करने के लिए थे। इसका उद्देश्य शांति बनाए रखना था। कुरान में ईश्वर पैगंबर से कहते है:

    और यदि शत्रु शांति चाहता है और लड़ना बंद कर देना चाहता है, तो तुम्हें भी शांति की ओर झुकना होगा।

    अध्याय 8: छंद 61

    पैगंबर मुहम्मद के 20 प्रसिद्ध लेख

    पैगंबर मुहम्मद – ईसाई धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी

    रेवरेंड डेविड बेंजामिन केलदानी, एक पूर्व कैथोलिक बिशप ने 1928 में “बाइबल में मुहम्मद” नामक एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने साबित किया कि पैगंबर मुहम्मद को लेकर बाइबल डेत्रोनोमी 18:18 और 19, डेत्रोनोमी 33:2, जॉन 1:21, जॉन 14:16, जॉन 15:26 और जॉन 16:7 में भविष्यवाणी की गई है।

    पूरी मानवता के लिए आदर्श

    कई पैगंबर को ईश्वर ने कुछ सिमित जनजातियों या राष्ट्रों के लिए नियुक्त किया गया था। उनमें से कुछ को शास्त्र दिए गए थे। हालांकि, लोगों ने अपने स्वार्थी हितों के लिए उन शास्त्रों के वास्तविक संदेश को ही बदल दिया और भ्रष्ट कर दिया। इसलिए ईश्वर ने अंतिम पुस्तक कुरान को – पैगंबर मुहम्मद पर प्रकट किया और इसे आज तक भ्रष्ट होने एवं परिवर्तन से बचाया।

    पैगंबर मुहम्मद एक अरब राष्ट्रवादी नेता नहीं थे। ईश्वर ने उन्हें पूरी दुनिया के लिए दया एवं करुणा के रूप में भेजा, यही वजह था कि उनके अंदर राष्ट्रीय मूल या जातीयता की परवाह किए बिना सभी मानवजाति के लिए प्रेम और चिंता थी। उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे का प्रचार किया और सभी को एक मानव परिवार के सदस्यों के रूप में देखा, जो एक ईश्वर द्वारा बनाये गये थे। उनके संदेश ने सभी मानवीय समस्याओं के मूल कारण को संबोधित किया और एक समाधान प्रदान किया कि ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार जीवन जीना है।

    ईश्वर ने अपने पैगंबर के रूप में सबसे अच्छे लोगों को चुना है। पैगंबर मुहम्मद(उन पर शांति हो) अंतिम पैगंबर थे जिन्हें पूरी मानव जाति के लिए भेजा गया था और इसलिए वो हम सभी के लिए सबसे बेहतर प्रेरणाश्रोत और आदर्श वयक्ति हैं । इसलिए, हम में से प्रत्येक के लिए पैगंबर मुहम्मद द्वारा लाए गए दिव्य संदेश को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। न केवल इस दुनिया में बल्कि मृत्यु के बाद के जीवन में भी सफलता प्राप्त करने के लिए हमारे जीवन में उनकी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।

    पैगंबर मुहम्मद को लेकर प्रमुख शख्सियत की राय

    पैगंबर मुहम्मद को लेकर महात्मा गांधीजी की राय

    महात्मा गांधी जी ने 1924 में “यंग इंडिया” में ईश्वर के अंतिम पैगंबर – मुहम्मद के बारे में निम्नलिखित बातें कहा था:

    मैं उस व्यक्ति के जीवन को सबसे बेहतर तरीक़े से जानना चाहता था जो आज लाखों मानव जाति के दिलों पर एक निर्विवाद प्रभाव रखते हैं । मैं पहले से कहीं अधिक आश्वस्त हो गया कि यह तलवार नहीं था जिसने जीवन की योजना में उन दिनों इस्लाम के लिए एक जगह जीती थी। यह कठोर सादगी, पैगंबर का पूर्ण आत्म-प्रभाव प्रतिज्ञाओं के लिए ईमानदार सम्मान, अपने दोस्तों और अनुयायियों के प्रति उनकी गहन भक्ति, उनकी निडरता, ईश्वर में और अपने स्वयं के मिशन में उनका पूर्ण विश्वास था। ये सब चीजें थीं जो उनको आगे लेकर गईं, ना की तलवार और उन्होंने हर बाधा को पार किया । जब मैंने दूसरा खंड (पैगंबर की जीवनी) बंद कर दिया, तो मुझे खेद था कि मेरे लिए उस महान जीवन के बारे में पढ़ने के लिए और अधिक नहीं था

    यंग इंडिया, 1924

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