More

    Choose Your Language

    मुगल शासक और उनके कार्य

    सभी राजाओं को उनके अपने निजी धर्म में विश्वास होने के बावजूद, उनके सामने सिर्फ़ अपने शासन की रक्षा और अपने राज्य का विस्तार करने का सामान्य लक्ष्य होता था। उन्होंने ऐसी ही चीजें कीं जिनसे उन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिली। हमें कभी भी राजाओं के कार्यों को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए।

    अक्सर कई लोगों को यह शिकायत होती है कि मुगल शासकों ने अपने शासनकाल में कई मंदिरों को नष्ट कर दिया, हिंदुओं को यातनाएँ दी और तलवार की नोक पर हिंदुओं को जबरन इस्लाम में धर्म परिवर्तित करने पर मजबूर किया। कुछ लोग मुगल शासकों के इन कृत्यों को “इस्लाम” से जोड़ते हैं, वहीं कुछ लोग, इस भावना के वजह से भारत में रह रहे आज के भारतीय मुसलमानों के प्रति द्वेष की भावना और शिकायत का भाव रखते हैं। जबकि भारत में रहने वाले आज के भारतीय मुसलमानों के अतीत का मुगल शासकों से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही वो इसके लिए जिम्मेदार हैं, इसके बावजूद भी उनको समय समय पे मुगलों के इन कृत्यों के लिए कोसा जाता है। पर वास्तविकता क्या है ? आइए सच्चाई का पता लगाएं।

    इस्लाम, मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों के विनाश की अनुमति नहीं देता है

    अल्लाह कुरान में कहते हैं:

    यदि परमेश्वर ने लोगों को एक दूसरे के ज़रिए से दफ़ा नहीं किया होता, तो कई मठ, कलीसियाएं, आराधनालाएं और मस्जिदें, जहां काफी ज्यादा परमेश्वर का नाम लिया जाता है, ध्वस्त कर दिए जाते। परमेश्वर निश्चित तौर पे उन लोगों की सहायता करता है जो उसके मार्ग में उसकी सहायता करते हैं – निसंदेह परमेश्वर शक्तिशाली और ज़बरदस्त है

    अध्याय 22: वचन 40

    ऊपर दी गई आयत, साफ़ तौर पे ये दर्शाती है कि इस्लाम मुसलमानों को गैर-मुस्लिमों के पूजा स्थलों पर हमला करने की अनुमति कभी नहीं देता है। इतना ही नहीं बल्की इस्लाम एक इस्लामी देश में गैर-मुस्लिमों के पूजा स्थलों के अस्तित्व का प्रावधान भी करता है। इंडोनेशिया और मलेशिया इसके बहुत अच्छे उदाहरण हैं।

    मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों को क्यों ध्वस्त कर दिया? तथ्य और मिथक

    रोमिला थापर, जो एक प्रसिद्ध इतिहासकार एवं सहित्यकार हैं, वो कहती हैं, “मंदिर को नष्ट करना, आक्रमणकारियों की ओर से केवल सत्ता का बल प्रदर्शन होता था, भले ही वे मुस्लिम हों या हिंदू। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे कई हिंदू राजा थे जिन्होंने मंदिरों को नष्ट कर दिया था, जिनका मकसद या तो हर्षदेव और कश्मीर के अन्य राजाओं की तरह जानबूझकर मंदिरों की संपत्ति प्राप्त करना, या विजयी परमार राजा के तरह पराजित राजा के निशानी को ख़त्म करना होता था, जिन्होंने एक अभियान के तहत पराजित चौलुक्य द्वारा बनाए गए मंदिरों को नष्ट कर दिया था”। देखें: “वर्तमान के रूप में अतीत”, पुस्तक के अध्याय “इतिहास की रक्षा में”।

    मुस्लिम शासकों के कार्य और इस्लाम

    क्या मुस्लिम शासकों के कार्यों को इस्लाम से जोड़ कर देखना सही है? इसका जवाब “बिल्कुल नहीं” होगा क्योंकि:

    1. आश्चर्य की बात है कि एक भी मुस्लिम शासक ने हज नहीं किया, जो इस्लाम के 5 अनिवार्य स्तंभों में से एक है। ऐसे शासकों को इस्लामी शासक कहना काफ़ी हास्यास्पद होगा जिन्होंने अपने धर्म में हज जैसे अनिवार्य दायित्व को पूरा करना ज़रूरी नहीं समझा। इसलिए, ऐसे मुस्लिम शासकों के कार्यों को इस्लाम से जोड़ना सही नहीं है।
    2. मुस्लिम शासकों को हमें, सिर्फ ऐसे राजाओं के रूप में देखना चाहिए जो सिर्फ़ नाम के लिए मुस्लिम धर्म से संबंध रखते थे। उनका रवैया और स्वभाव अन्य धर्मों के राजाओं के ही तरह था – जिनका एकमात्र उद्देश्य सिर्फ अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना एवं राजशाही जीवन का आनंद लेना होता था।

    गैर-मुस्लिम राजाओं के कार्य

    इतिहास हमें बताता है कि कई गैर-मुस्लिम राजा भी क्रूर थे जिन्होंने निर्दोष लोगों के खिलाफ कई अत्याचार किए। उदहारण के लिए राजा अजातशत्रु ने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए अपने ही पिता को कैद कर लिया और बाद में उनके बेटे उदयभद्र ने उन्हें मार डाला।

    महापद्म नंद ने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए अपने भाइयों की हत्या कर दी और नंद राजवंश की शुरुआत की। क्या आप इन कार्यों को हिंदू धर्म से जोड़ेंगे?

    कुछ शैवते चोल राजाओं ने वैष्णवों पे जुल्म किया। क्या आप इन कार्यों को शैव दर्शन से जोड़ेंगे और इसके लिए आज के शैवियों को दोषी ठहराएंगे?

    तो फिर भारतीय मुस्लिमों के साथ ऐसा दोहरा मापदंड क्यों ? आप मुस्लिम राजाओं के कार्यों को भी उसी तरह क्यों नहीं देखते हैं, जिस तरह आप हिंदू राजाओं के कार्यों को देखा करते हैं?

    आपको जानकर हैरानी होगी कि इतिहास में कई हिंदू राजाओं ने भी कई मंदिरों पर छापा मारा, उसे ध्वस्त किया और मूर्तियों का अपहरण भी किया

    देखें: 

    राजाओं के बीच आपस की लड़ाई

    कुछ लोग मुस्लिम और हिंदू राजाओं के बीच की लड़ाई को “इस्लामी” रंग देने की कोशिश करते हैं। सच्चाई यह है कि ईन राजाओं ने सिर्फ़ अपने राजनीतिक क्षेत्र का विस्तार करने और इसकी रक्षा करने के लिए ही लड़ाईयाँ लड़ी। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही राजा इस प्रवृति से अछूते नहीं हैं। हिंदू राजाओं ने अन्य हिंदू राजाओं के साथ भी लड़ाई लड़ी।

    उदाहरण के लिए : चोल, पांड्य और चेरस के बीच लड़ी गई युद्ध अच्छी तरह से प्रलेखित हैं। मराठों ने गुजरात पर विजय प्राप्त की, और अभी भी बड़ौदा पर कब्जा कर रखा है। अशोक ने कलिंग के शासक को मार डाला और हजारों उड़ियाओं का नरसंहार किया। सूची अंतहीन है। क्या हिंदू राजाओं ने ये लड़ाइयां हिंदू धर्म के लिए लड़ी या अपने राज्य के विस्तार के लिए? क्या आप हिंदू राजाओं के बीच हुई इन लड़ाईयों को हिंदू धर्म के साथ जोड़ेंगे?

    हिंदू राजाओं की तरह, मुस्लिम राजाओं ने भी सिर्फ अपने राजनीतिक क्षेत्रों के विस्तार एवं रक्षा के लिए लड़ाइयां लड़ी। इन लड़ाईयों का इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं था, बल्कि ये सिर्फ और सिर्फ राज्य विस्तार के लिए था था। हिंदू राजा हों या मुस्लिम राजा, राजाओं के कार्यों को धर्म से जोड़ना बिल्कुल गलत है।

    मुस्लिम राजाओं का “भारत” पर हमला

    यह आरोप बार बार लगाए जाते है कि मुस्लिम राजाओं ने ‘भारत’ पर आक्रमण किया और उसे लूट लिया। यह बयान बहुत भ्रामक और मिथ्या से भरा है क्योंकि जिस भारत पे आक्रमण की बात हो रही है, उस समय ‘भारत’ नाम का कुछ भी नहीं था। आज जो भारत हमारे सामने है, उस समय में अलग-अलग राजाओं द्वारा शासित विभिन्न राज्यों में विभाजित था जो हमेशा एक-दूसरे के साथ लड़ते थे। मुस्लिम शासकों के आक्रमण प्रायः इन राज्यों पर हुआ करते थे न की समूचे भारत पर।

    क्या हिंदू राजाओं ने विदेशी भूमि पर आक्रमण किया था?

    विदेशी भूमि पे आक्रमण करना कोई धर्म से जुड़ी बात नहीं है। ऐसा नहीं है कि उस समय काल में सिर्फ़ मुस्लिम शासकों ने ही ऐसा किया था। कई हिंदू राजाओं ने भी विदेशी भूमि पर आक्रमण किया जो आज भारत के सीमा के बाहर के देश हैं। एक राजा, जिसका विशेषरूप से उल्लेख करना चाहिए, वह चोल राजवंश के राजेंद्र चोल है। उन्होंने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की और मलेशिया और इंडोनेशिया पर भी आक्रमण किया। यही वजह है कि आज हमें मलेशिया और इंडोनेशिया में भी कई भारतीय देवी देवताओं की मंदिर देखने को मिलती हैं।

    मलेशिया और इंडोनेशिया तक फैला राजेंद्र चोल का राज्य

    क्या आप राजेंद्र चोल के द्वारा विदेशी जमीनों पर किए गए इन आक्रमणों के लिए हिंदू धर्म को जिम्मेदार ठहराएंगे? यदि नहीं, तो आप मुस्लिम शासकों के द्वारा किए गए आक्रमणों के लिए इस्लाम को क्यों जिम्मेदार ठहराते हैं?

    क्या मुस्लिम शासकों ने हिंदुओं को जबरदस्ती इस्लाम में परिवर्तित किया?

    इस सवाल का जवाब ढूँढने से पहले हमें यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या मुस्लिम शासक खुद इतने धार्मिक थे कि उन्हें इस्लाम धर्म से इतना प्रेम था कि उन्होंने अपने निजी जीवन को इस्लाम के तरीके पे गुज़ारा हो और इसके बाद वो चाहते थे कि बाक़ी हिंदू भी मुस्लिम बन जाए?

    स्पष्ट है कि इसका उत्तर ‘नहीं’ होगा, क्योंकि एक भी मुस्लिम शासकों ने हज नहीं किया जो इस्लाम का एक अनिवार्य स्तंभ है। इससे पता चलता है कि वे धर्म के बारे में ज्यादा चिंतित नहीं रहते थे बल्कि उन्हें सिर्फ़ अपने “साम्राज्य विस्तार” की चिंता थी और वे सब अपने “महिमामंडन” और एक “विलासतापूर्ण जीवन” को जीने में व्यस्त थे। आखिर ऐसे प्रवृति के राजाओं को देश में इस्लाम फैलाने की रुचि कैसे हो सकती है?

    यह कहना हास्यास्पद है कि मुस्लिम शासक जो इस्लाम के एक अनिवार्य स्तंभ को भी पूरा करने की परवाह नहीं करते थे, उन्हें इस्लाम से इतना लगाव था कि वे इस्लाम को फैलाने में रुचि रखते थे।

    मुस्लिम शासकों ने लगभग 800 वर्षों (8 शताब्दियों) तक भारत पर शासन किया। 800 वर्ष एक बहुत लंबी अवधि होती है। यदि प्रत्येक मुस्लिम शासक ने 800 वर्षों के अपने पूरे शासन के दौरान, तलवार की नोक पर हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित करने का प्रयास किया था, तो आज हमारे पास इस देश में 80% हिंदू आबादी कैसे बच गई? क्या आपको लगता है कि यह संभव है? स्पष्ट रूप से जवाब ‘नहीं’ होगा।

    इसके अलावा, मुस्लिम शासकों के शासन के दौरान भी, हिंदू हमेशा से बहुसंख्यक समुदाय थे। यह कहने की जरूरत नहीं है, किसी देश पर शांतिपूर्ण तरीके से शासन करने के लिए और वह भी 800 वर्षों की लंबी अवधि तक, आपको न्याय, सद्भावना, विश्वास और बहुसंख्यक समुदाय के सहयोग की नितांत आवश्यकता होती है। उस समय आज के तरह, युद्ध की कोई बड़ी तकनीक नहीं थी, आमतौर पे शारीरिक क्षमता के बल पर युद्ध लड़ी जाती थी और सेना की ताकत केवल पुरुषों की संख्या में होती थी। इससे यह स्पष्ट है कि सेना में अधिकांश सैनिक हिंदू धर्म से ही होते थे। अगर मुस्लिम राजाओं ने तलवार की नोक पर हिंदुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन किया होता, तो क्या आपको लगता है कि हिंदू सैनिक जो सेना में बहुमत में थे, वे खामोश बैठे रहते? आप अपनी ही सेना के सैनिकों में मनभेद पैदा करके देश पर शासन कैसे कर सकते हैं? अब अगर कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष तरीके से सोचे तो उसे यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि तलवार की नोक पर हिंदुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन कि बात सिर्फ एक मिथक के अलावा कुछ नहीं है।

    समाप्ति

    सभी राजाओं को उनके अपने निजी धर्म में विश्वास होने के बावजूद, उनके सामने सिर्फ़ अपने शासन की रक्षा और अपने राज्य का विस्तार करने का सामान्य लक्ष्य होता था। उन्होंने ऐसी ही चीजें कीं जिनसे उन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिली। हमें कभी भी राजाओं के कार्यों को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए। हम 21वीं सदी में जीते हैं और आज हम कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जैसे जातिवाद, गरीबी, मुद्रास्फीति, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई आदि। कई सौ साल पहले जो कुछ हुआ था उसके बारे में बहस कर के समय बर्बाद करने से अच्छा यह होगा कि हम इन मुद्दों के बारे में बात करें और इसे हल करने की कोशिश करें।


    लेख जिनमें आपकी रुचि हो सकती है

    WHAT OTHERS ARE READING

    Most Popular