परिचय
भारत विभिन्न धर्मों, जातियों, संस्कृतियों और भाषाओं के लोगों का देश है। इस बहुलवादी देश की अक्क्षुनता और गरीमा को बनाए रखने के लिए, हम सभी अपने बीच शांति, सहिष्णुता और सद्भाव की आवश्यकता को भली भांति समझते हैं। पर सवाल यह है कि इस शांति और सद्भाव को कैसे हासिल किया जाए? एक बहुलवादी समाज में अनेकता में एकता प्राप्त करना यक़ीनन एक चुनौती भरा सवाल है।
इस लेख में, हम पैगंबर मुहम्मद के जीवन की एक शानदार घटना को देखेंगे, जिसमें हम यह देख सकते है कि उन्होंने कैसे एक बहुलवादी समाज की नीवं रखी और वहां के लोगों के बीच शांति एवं सद्भाव को सफलतापूर्वक स्थापित किया था।
पृष्ठभूमि
पैगंबर मुहम्मद का जन्म अरब के मक्का नामक शहर में हुआ था। मक्का में वह एक सम्मानित व्यक्ति के तौर पे जाने जाते थे। उनके सम्मान का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वहां लोग उन्हें उनकी ईमानदारी और अच्छे चरित्र के वजह से “अल-अमीन” पुकार कर बुलाते थे। जिसका का अर्थ “वह वयक्ति जो विश्वसनीय हो” होता है। 40 साल की उम्र में, ईश्वर ने अपने संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए पैगंबर के तौर पर पैगंबर मोहम्मद का चयन किया और श्रुति के जरिए उनको ईश्वर का पहला संदेश मिला। इस घटना के बाद, पैगंबर मुहम्मद ने लोगों के बीच यह उपदेश देना शुरू कर दिया कि सभी मनुष्य एक ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं, इस दुनिया में हम जो कुछ भी करते हैं उसके लिए मौत के बाद हमें उस ईश्वर के सामने जवाबदेह होना हैं और संसार का हर वयक्ति मनुष्य होने के नाते एक दुसरे के समान हैं चाहे उनकी जाती, नस्ल और त्वचा का रंग अलग अलग क्यों न हों। मक्का के तत्कालीन सरदार जो जन्म और वंश के आधार पे खुद को श्रेष्ठ बताने का दावा किया करते थे एवं इसी दावेदारी के बुनियाद पे वहां के कमज़ोर घराने एवं गुलामों पे अत्याचार किया करते थे, उन्हें पैगंबर मुहम्मद द्वारा प्रचारित समानता के इस संदेश से खतरा महसूस होने लगा। उन्होंने इस संदेश को रोकने के लिए पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों को सताना शुरू कर दिया। दिन प्रतिदिन पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों पर जुल्म सितम एवं यातनाएँ बढ़ती ही गई। मक्का में उनके खिलाफ़ जुल्म और उत्पीड़न का मामला हद से ज्यादा बढ़ जाने की वजह से, आपको मक्का छोड़कर मदीना नामक शहर में जाना पड़ा।
मदीना
मदीना एक बहुलवादी समाज था। इसमें कई अलग-अलग क़बीले के लोग रहते थे जो अलग-अलग धर्मों के मानने वाले थे और अलग अलग मूर्तियों की पूजा करते थे, इन्हीं कबीलों के बीच यहूदी धर्म के भी कई क़बीले रहते थे। ये क़बीले कई सदियों से आपस में लड़ते आ रहे थे और एक-दूसरे पर अत्याचार करने का कोई भी मौक़ा नहीं चूकते थे।
मदीना का संविधान
मदीना में पैगंबर के आगमन के बाद, वहां के लोगों ने न सिर्फ़ उनके संदेश को क़ुबूल किया बल्कि उन्हें अपने नेता के रूप में भी स्वीकार भी किया। जैसे ही वह नेता बने, उन्होंने सबसे पहले मदीना में फ़ैले अंतहीन लड़ाई और नफ़रत को समाप्त करने एवं शांति लाने के लिए, मदीना की विभिन्न कबीलों के साथ एक समझौता किया। इस प्रसिद्ध समझौते को हम “मदीना के संविधान” के रूप में जानते है, जिसके जरिए से पैगंबर मुहम्मद, वहां सदियों से चले आ रही अंतहीन लड़ाई और उत्पीड़न को सफलतापूर्वक समाप्त करने में सफ़ल हुए।
इस समझौते को मुख्य तौर पे समानता, न्याय और धर्म की स्वतंत्रता के बुनियाद पर बनाया गया था। आइए इस समझौते के कुछ सबसे महत्वपूर्ण खंडों पर एक नज़र डालें।
धर्म और सद्भावना की स्वतंत्रता की धारा
मुसलमानों के साथ साथ यहूदियों को भी एक समुदाय के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहूदियों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है और मुसलमानों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है।
यहूदियों और मुसलमानों के बीच सद्भावना और ईमानदारी होगी।
समानता की धारा
यदि यहूदी मुसलमानों को एक समझौते के लिए बुलाते हैं, तो मुसलमान इसे स्वीकार करेंगे, और यदि मुसलमान यहूदियों को एक समझौते के लिए बुलाएंगे, तो यहूदी इसे स्वीकार करेंगे।
यहाँ एक बात पे ध्यान देने की ज़रुरत है कि, इस समझौते से पहले, यहूदी कबीलों में भी असमानता की प्रथा प्रचलित थी। उदाहरण के लिए बनु नज़ीर एवं बनु कुरैज़ाह नाम की दो यहूदी कबीलों के बीच, आपस के मामलों को देखते हैं। यदि बनु नज़ीर का कोई व्यक्ति बनु कुरैज़ाह के किसी व्यक्ति को मारता है, तो वे हत्या के मुआवजे के रूप में केवल पैसा देकर छूट जाएंगे। लेकिन, अगर उनके कबीले के किसी सदस्य की हत्या बनु कुरैज़ाह के किसी वयक्ति द्वारा की जाती है, तो वे हत्यारे को मार कर उसका बदला लेंगें।
“मदीना के संविधान” समझौते के माध्यम से पैगंबर मुहम्मद ने ऐसी बेतुके प्रथाओं को समाप्त कर दिया और मुसलमानों के साथ साथ यहूदी कबीलों के बीच भी समानता प्रदान की गई।
न्याय की धारा
मुसलमान हर उस व्यक्ति या कबीले के खिलाफ खड़ा रहेगा, जो अन्याय करता है या अपराध एवं बुराई को बढ़ावा देता है। समझौते के तहत अन्य सभी कबीले उस व्यक्ति के खिलाफ एकजुट होंगे, भले ही वह व्यक्ति मुस्लिम ही क्यों न हो।
उदाहरण के लिए: अगर एक मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम को धोखा देता है, तो अन्य सभी मुसलमान उस दोषी मुस्लिम की तरफ़ खड़े होने के बजाए केवल न्याय के लिए खड़े रहेंगे और उस गैर-मुस्लिम का समर्थन करेंगे जिसे धोखा दिया गया है।
एक मुसलमान के लिए किसी हत्यारे का समर्थन करना या उसे आश्रय देना जायज़ नहीं है।
इस समझौता में किसी भी अन्यायी व्यक्ति या समझौते के उल्लंघनकर्ता के बचाव के लिए कोई प्रावधान नहीं होगा।
मदीना का संविधान और आज की प्रासंगिकता
पैगंबर मुहम्मद ने एक समझौते के माध्यम से मदीना की विभिन्न कबीलों के बीच सदियों से चली आ रही अंतहीन लड़ाई और उत्पीड़न एवं नफरत को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया, जिसने लोगों को धर्म, समानता और न्याय की स्वतंत्रता के व्यावहारिक कार्यान्वयन की गारंटी दी।
जैसा कि हम सब देख सकते है, 1400 से अधिक वर्षों के बाद भी, मदीना के संविधान के ये प्रमुख सिद्धांत भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों, संस्कृतियों और भाषाओं के लोगों के बीच समानता, शांति और सद्भाव कायम करने के लिए आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं।
निस्संदेह, धर्म की स्वतंत्रता, समानता और न्याय के महान सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से लागू करने से ही हमें शांति, सहिष्णुता और सद्भाव प्राप्त हो सकती है, जिसकी कामना हममें से हर एक वयक्ति करते हैं।
एकता ही ताकत! जय हिंद!